प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों पर कैबिनेट समिति (सीसीईए) ने 7 अक्टूबर 2015 को पूर्ववर्ती एकीकृत जल-संभर प्रबंधन कार्यक्रम ‘नीरांचल’ को मंजूरी प्रदान की.
इस परियोजना के लिए कुल परिव्यय 357 मिलियन डॉलर (एक डॉलर में 60 रुपये की दर से 2142.30 करोड़ रुपये) तय किया गया है. राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ नौ राज्यों आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना में परियोजना के क्रियान्वयन को स्वीकृति दी गयी.
कुल लागत में सरकार की भागीदारी 1071.15 करोड़ रुपये (50 फीसदी) होगा, जबकि शेष राशि विश्व बैंक से प्राप्त ऋण के रूप में उपलब्ध होगी.
इस परियोजना के लिए कुल परिव्यय 357 मिलियन डॉलर (एक डॉलर में 60 रुपये की दर से 2142.30 करोड़ रुपये) तय किया गया है. राष्ट्रीय स्तर के साथ-साथ नौ राज्यों आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना में परियोजना के क्रियान्वयन को स्वीकृति दी गयी.
कुल लागत में सरकार की भागीदारी 1071.15 करोड़ रुपये (50 फीसदी) होगा, जबकि शेष राशि विश्व बैंक से प्राप्त ऋण के रूप में उपलब्ध होगी.
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के जल-संभर घटक के प्रमुख लक्ष्य, प्रत्येक खेत में सिंचाई सुनिश्चित करना और जल के अधिकतम उपयोग (प्रति बूंद ज्यादा फसल) के लिए ‘नीरांचल’ को विशेष रूप से डिजाइन किया गया है. इस परियोजना से निम्नलिखित लाभ प्राप्त किये जा सकेंगे :
• इससे भारत में जल-संभर और वर्षा सिंचित कृषि प्रबंधन के तौर-तरीकों में संस्थागत बदलाव किये जा सकेंगे.
• इससे ऐसी विशेष प्रणालियां सृजित की जा सकेंगी, जो जल-संभर कार्यक्रमों तथा वर्षा सिंचित सिंचाई प्रबंधन के तौर-तरीकों को और बेहतर करने तथा इनके अच्छे परिणाम प्राप्त करने में सहायक साबित होंगी.
• इससे जल-संभर कार्यक्रम वाले क्षेत्रों में प्रबंधन के तौर-तरीकों को बनाए रखने की रणनीतियां तैयार करने में भी मदद मिलेगी. परियोजना को मिलने वाली सहायता को वापस लेने के बावजूद इस तरह की रणनीतियां बनाना संभव होगा.
• जल-संभर से जुड़े दृष्टिकोण, भावी लिंकेज के जरिए बेहतर निष्पक्षता, आजीविका और आमदनी में मदद करने के जरिए इन चिंताओं को दूर किया जाएगा. समावेशी के मंच के साथ-साथ स्थानीय लोगों की भागीदारी भी इसमें सहायक होगी.
नीरांचल के बल पर पीएमकेएसवाई का बेहतर क्रियान्वयन संभव हो पाएगा. इस कार्यक्रम से वर्षा जल के सतही प्रवाह को कम करने, भूजल के पुनर्भरण को बढ़ाने और वर्षा सिंचित क्षेत्रों में जल की उपलब्धता बेहतर करने में मदद मिलेगी. ऐसे में वर्षा सिंचित कृषि उत्पादकता बढ़ेगी, दूध का उत्पाधदन बढ़ेगा और इसके साथ ही परियोजना वाले क्षेत्रों में संबंधित कार्यक्रमों में बेहतर तालमेल के साथ फसलों की पैदावार भी बढ़ेगी.
जल-संभर विकास परियोजनाएं क्षेत्र विकास कार्यक्रम हैं, जिनसे क्षेत्र में रहने वाले सभी लोग लाभान्वित होंगे.
• इससे भारत में जल-संभर और वर्षा सिंचित कृषि प्रबंधन के तौर-तरीकों में संस्थागत बदलाव किये जा सकेंगे.
• इससे ऐसी विशेष प्रणालियां सृजित की जा सकेंगी, जो जल-संभर कार्यक्रमों तथा वर्षा सिंचित सिंचाई प्रबंधन के तौर-तरीकों को और बेहतर करने तथा इनके अच्छे परिणाम प्राप्त करने में सहायक साबित होंगी.
• इससे जल-संभर कार्यक्रम वाले क्षेत्रों में प्रबंधन के तौर-तरीकों को बनाए रखने की रणनीतियां तैयार करने में भी मदद मिलेगी. परियोजना को मिलने वाली सहायता को वापस लेने के बावजूद इस तरह की रणनीतियां बनाना संभव होगा.
• जल-संभर से जुड़े दृष्टिकोण, भावी लिंकेज के जरिए बेहतर निष्पक्षता, आजीविका और आमदनी में मदद करने के जरिए इन चिंताओं को दूर किया जाएगा. समावेशी के मंच के साथ-साथ स्थानीय लोगों की भागीदारी भी इसमें सहायक होगी.
नीरांचल के बल पर पीएमकेएसवाई का बेहतर क्रियान्वयन संभव हो पाएगा. इस कार्यक्रम से वर्षा जल के सतही प्रवाह को कम करने, भूजल के पुनर्भरण को बढ़ाने और वर्षा सिंचित क्षेत्रों में जल की उपलब्धता बेहतर करने में मदद मिलेगी. ऐसे में वर्षा सिंचित कृषि उत्पादकता बढ़ेगी, दूध का उत्पाधदन बढ़ेगा और इसके साथ ही परियोजना वाले क्षेत्रों में संबंधित कार्यक्रमों में बेहतर तालमेल के साथ फसलों की पैदावार भी बढ़ेगी.
जल-संभर विकास परियोजनाएं क्षेत्र विकास कार्यक्रम हैं, जिनसे क्षेत्र में रहने वाले सभी लोग लाभान्वित होंगे.
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