अनुच्छेद 370 का संशोधन या निरसन संभव नहीं: जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय-(20-OCT-2015) C.A

| Tuesday, October 20, 2015
जम्मू और कश्मीर उच्च न्यायालय ने 11 अक्टूबर 2015 को यह निर्णय दिया कि धारा 370 के तहत प्रावधानों में संशोधन, निरसन या रद्द करना संभव नहीं है. उच्च न्यायालय के अनुसार जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष राज्य का दर्जा संविधान में स्थायी रूप से दिया गया है. 

न्यायालय ने इस बात पर भी जोर दिया कि अनुच्छेद 35 ए राज्य में लागू मौजूदा कानूनों को संरक्षण देता है. 

न्यायमूर्ति हसनैन मसूदी और न्यायमूर्ति जनक राज कोतवाल की खंडपीठ ने 60 पृष्ठ वाले अपने फैसला में कहा कि अनुच्छेद 370 संविधान में अस्थायी प्रावधान के रूप में है, पैरा 21 में भी इस प्रावधान को अस्थाई संक्रमणकालीन और विशेष दर्ज दिया गया है. जिसे संविधान में स्थायी मान लिया गया है.
खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि राज्य में ऐसे अपवादों और संशोधनों में अनुच्छेद 370 (1) में दी गयी शक्तियों के अनुसार राष्ट्रपति संविधान के किसी भी अनुच्छेद के प्रावधान या विस्तार को खारिज कर सकते हैं.  राज्य में किसी भी प्रावधान में फेरबदल, संशोधन, लागू करने या  हटाने या किसी हिस्से को छोड़ने या जोड़ने का अधिकार राष्ट्रपति की प्रदत्त शक्तियों में निहित है. संविधान के प्रावधानों के मामले में भी ऐसी शक्ति का विस्तार पहले से ही लागू है.

न्यायालय ने कहा कि जम्मू-कश्मीर ने भारत की प्रभुता स्वीकार कर चुका है.  भारत के प्रभुत्व में संविधान के अनुच्छेद 370 के तहत सीमित संप्रभुता और विशेष दर्जा का आनंद ले रहा है.

भारत के संविधान का अनुच्छेद 370 - यह जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष स्वायत्त दर्जा प्रदान करता है. अनुच्छेद संविधान के पैरा XXXI में अस्थाई रूप से लिखा गया है. जो संक्रमणकालीन और विशेष प्रावधान से संबंधित है.

भारत के संविधान का अनुच्छेद 35 ए - संविधान प्रारंभ के संदर्भ में यह 14 मई 1954  से प्रभावी है. इससे पहले सितंबर 2015 में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने धारा 370 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका स्वीकार की थी.

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