प्रख्यात पत्रकार, लेखक और परमाणु
विरोधी कार्यकर्ता प्रफुल्ल बिदवई का 24 जून 2015 को नीदरलैंड स्थित एम्स्टर्डम में निधन हो गया. वे 65 वर्ष के थे.
उनकी मृत्यु भोजन का टुकड़ा गले में फंसने के कारण सांस रुकने से हुई, वे एमस्टर्डम में एक सम्मेलन में भाग लेने गये थे.
बिदवई एमस्टर्डम के ट्रांसनेशनल इंस्टीट्यूट में फेलो थे जो अंतरराष्ट्रीय विद्वान, कार्यकर्ताओं का एक संगठन है. वह पत्रिकाओं और अखबारों में नियमित रुप से लिखा करते थे. इसके अतिरिक्त वह परमाणु विरोधी कार्यकर्ता भी थे.
उनकी मृत्यु भोजन का टुकड़ा गले में फंसने के कारण सांस रुकने से हुई, वे एमस्टर्डम में एक सम्मेलन में भाग लेने गये थे.
बिदवई एमस्टर्डम के ट्रांसनेशनल इंस्टीट्यूट में फेलो थे जो अंतरराष्ट्रीय विद्वान, कार्यकर्ताओं का एक संगठन है. वह पत्रिकाओं और अखबारों में नियमित रुप से लिखा करते थे. इसके अतिरिक्त वह परमाणु विरोधी कार्यकर्ता भी थे.
उन्होंने 1999 में ‘न्यू न्यूक्स : इंडिया, पाकिस्तान एंड ग्लोबल न्यूक्लियर डिसआर्ममेंट’ सहित कई पुस्तकें भी लिखी हैं. उनकी अंतिम पुस्तक “दि पॉलिटिक्स ऑफ़ क्लाइमेट चेंज एंड दि ग्लोबल क्राइसिस : मोर्टगेजिंग आवर फ्यूचर’ वर्ष 2012 में प्रकाशित हुई थी.
नागपुर में जन्में बिदवई टाइम्स ऑफ इंडिया में वरिष्ठ संपादक के पद पर कार्यरत रहे. वे कई राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय समाचार पत्रों में स्तंभकार भी रहे, उन्होंने फ्रंटलाइन, दि आसाम ट्रिब्यून, गार्जियन, ला मोंड डिप्लोमेटिक तथा मैनिफेस्टो जैसी प्रसिद्ध पत्रिकाओं में लेख लिखे.
बिदवई परमाणु निरस्त्रीकरण और शांति गठबंधन के संस्थापक सदस्य थे, जिसकी स्थापना वर्ष 2000 में की गयी.
बिदवई ने आईआईटी बॉम्बे से विज्ञान और प्रौद्योगिकी, दर्शनशास्त्र और अर्थशास्त्र की पढ़ाई की थी. वे इंडियन काउंसिल फॉर सोशल साइंस रिसर्च, सेंट्रल एडवाइजरी बोर्ड ऑन एजुकेशन और नेशनल बुक ट्रस्ट के सदस्य भी रहे.
उन्हें वर्ष 2000 में सीन मैक ब्राइड इंटरनेशनल पीस प्राइज से सम्मानित किया गया. यह पुरस्कार इंटरनेशनल पीस ब्यूरो (जिनेवा व लंदन), विश्व के प्रतिष्ठित शांति संगठन, द्वारा प्रदान किया जाता है.
भारतीय वाम पंथ में उत्पन्न संकट पर उनकी पुस्तक इस वर्ष के आखिर में रिलीज होने वाली थी.
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