लोकसभा ने शत्रु संपत्ति अधिनियम में संशोधन हेतु बिल पारित किया-(10-MAR-2016) C.A

| Thursday, March 10, 2016
लोक सभा में 9 मार्च 2016 को शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 में संशोधन हेतु बिल पारित किया गया. इसका उद्देश्य पाकिस्तान एवं चीन के साथ युद्ध में विस्थापित लोगों द्वारा दोनों देशों में छोड़ी गयी संपत्ति का उचित हल निकालना है.

लोकसभा में शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 लोकसभा द्वारा ध्वनि मत से पारित किया गया. इस दौरान सरकार ने दावा किया कि इसके उपाय को धर्म या जाति के चश्मे से नहीं देखा जाना चाहिए.

संसद की स्थायी समिति के पास भेजे जाने की विपक्ष की मांग को भी ठुकरा दिया गया.

शत्रु संपत्ति अधिनियम, 1968 

•    शत्रु संपत्ति अधिनियम को भारत सरकार ने 1968 में लागू किया था, जिसके अंतर्गत अभिरक्षण में शत्रु संपत्ति को रखने की सुविधा प्रदान की गई थी.

•    इस विधेयक में भारत-चीन 1962 युद्ध में विस्थापित लोगों की संपत्तियां भी शामिल हैं.

•    उत्तराधिकार का अधिकार शत्रु संपत्ति अधिनियम पर लागू नहीं होता.

•    भारत रक्षा अधिनियम के अंतर्गत बनाए गए भारतीय रक्षा नियमों के तहत भारत सरकार ने ऐसे लोगों की संपत्तियों और कंपनियों को अपने अधिकार में ले लिया, जिन्होंने पाकिस्तान की नागरिकता ले ली थी. ये शत्रु संपत्तियां, भारत में शत्रु संपत्ति् के अभिरक्षण के रूप में केंद्र सरकार द्वारा अभिरक्षित थीं.

•    पाकिस्तान सरकार ने वर्ष 1971 में स्वयं ही अपने देश में इस तरह कि सभी संपत्तियों का निपटारा कर दिया.

इससे पहले राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 7 जनवरी 2016 को शत्रु संपत्ति (संशोधन और विधिमान्यकरण) अध्यादेश, 2016 लागू किया.

पृष्ठभूमि

वर्ष 1962 के चीन युद्ध, एवं 1965 व 1971 के पाकिस्तान युद्धों में दोनों देशों के नागरिक अपनी संपत्तियां पीछे छोड़ गये थे. 1965 के युद्ध के बाद भारत और पाकिस्ताकन ने 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद घोषणा पर हस्ताक्षर किए. ताशकंद घोषणा में शामिल एक खंड के अनुसार दोनों देश युद्ध के संदर्भ में एक-दूसरे के द्वारा कब्जा की गई संपत्ति और परिसंपत्तियों को लौटाने पर विचार-विमर्श करेंगे.

केंद्र सरकार भारत में शत्रु संपत्ति के अभिरक्षण के माध्यम से देश के विभिन्न राज्यों में फैली शत्रु संपत्तियों को अपने अधिकार में रखती है.  इसके अतिरिक्त शत्रु संपत्ति्यों के तौर पर चल संपत्तिंयों की श्रेणियां भी शामिल है.

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