राज्य सभा ने रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) विधेयक 2015 पारित किया-(16-MAR-2016) C.A

| Wednesday, March 16, 2016
10 मार्च 2016 को राज्य सभा ने रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) विधेयक, 2015 पारित कर दिया. अन्य प्रावधानों के साथ विधेयक में रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण (आरईआरए) की स्थापना  की बात कही गई है ताकि रियल स्टेट क्षेत्र का व्यवस्थित विकास हो सके.
विधेयक का उद्देश्य घर खरीदने वाले लोगों के हितों की रक्षा करना भी है. साथ ही इसके तहत परियोजना के क्रियान्वयन में पारदर्शिता, जवाबदेही एवं दक्षता को बढ़ावा दे कर विनिर्माण उद्योग की साख को बढ़ाने की योजना है. 
विधेयक की मुख्य बातें
• विधेयक में खरीददारों एवं प्रोमोटरों के बीच लेन–देन को विनियमित करने और राज्य स्तरीय नियामक प्राधिकरण की स्थापना की बात कही गई है. 
• यह प्राधिकरणों के साथ प्रोमोटरों एवं एजेंटों के पंजीकरण की सुविधा प्रदान करता है. 
• खरीददारों से लिए गए पैसे का 70 फीसदी, प्रमोटरों को अलग बैंक खाते में जमा कराना अनिवार्य होगा तथा इस पैसे का इस्तेमाल सिर्फ उस परियोजना के निर्माण के लिए किया जाएगा. 
• उन्हें परियोजना संबंधी जानकारी जैसे प्रोमोटर, भूमि की स्थिति, अनुमोदनों की स्थिति, रियल एस्टेट एजेंटों और ठेकेदारों के साथ हुए समझौतों आदि का खुलासा करना होगा. 
• वाणिज्यिक रियल एस्टेट को भी इस विधेयक के दायरे में लाया गया है. 
• निर्माणाधीन परियोजनाओं को भी आरईआरए में पंजीकरण कराना आवश्यक है. 
• अगर बिल्डर खरीददारों को संपत्ति हस्तांतरित करने में देरी करता है, अपीलीय न्यायाधिकरण हस्तक्षेप करेगा और 60 दिनों के भीतर उन पर जुर्माना लगा देगा. अगर उपभोक्ता डेवलपर को भुगतान करने में विफल रहता है तो अपीलीय न्यायाधिकरण उस पर भी जुर्माना लगाएगा.
• अपीलीय न्यायाधिकरण के आदेशों का किसी भी प्रकार से उल्लंघन करने पर प्रमोटरों को तीन वर्ष की जेल और रियल एस्टेट एजेंटों और खरीददारों को एक वर्ष की जेल या मौद्रिक दंड या दोनों दिया जा सकता है. 
• खरीददार को संपत्ति हस्तांतरित करने के पांच वर्ष बाद तक बिल्डरों पर संरचनात्मक दोषों को दूर करने की जिम्मेदारी होगी. 
• खरीददारों को अब सिर्फ कार्पेट एरिया के लिए ही पैसे देने होंगे न कि सुपर बिल्ट– अप एरिया के लिए. 
• अगर डेवलपर तलों (फ्लोर) की संख्या में बढ़ोतरी करते हैं या बिल्डिंग की योजना में बदलाव करते हैं तो घर खरीदने वाले 66 फीसदी लोगों की सहमति उन्हें लेनी होगी. यह खरीददारों को किसी भी तदर्थ परिवर्तनों से बचाएगा जो फिलहाल मानक हैं. 
• 500 वर्ग मीटर सी छोटी परियोजनाएं ही अब जवाबदेही के दायरे में नहीं होंगीं. पहले 1000 वर्ग मीटर या 12 अपार्टमेंट जवाबदेही के दायरे से बाहर होते थे.
विधेयक को सबसे पहले लोकसभा में 2013 में कांग्रेस नेता और तत्कालीन केंद्रीय शहरी विकास मंत्री कुमारी शैलजा ने प्रस्तुत किया था और इसे संसद की स्थायी समिति के पास भेज दिया गया था. दिसंबर 2015 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने स्थायी समिति के सुझावों पर 20 संशोधन करने के बाद विधेयक को मंजूरी दे दी. 
कृषि के बाद रियल एस्टेट क्षेत्र दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता है और सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में 9% का योगदान करता है.

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