मॉरिटानिया 14 मार्च 2016 को वर्ष 1930 के जबरन श्रम रोकने हेतु बनाये गये 2014 के प्रोटोकॉल को मानने वाला दूसरा अफ़्रीकी देश बना.
मॉरिटानिया से पहले नाइजर (अफ्रीका), नॉर्वे (यूरोप) एवं इंग्लैंड (यूरोप) ने इस प्रोटोकॉल की पुष्टि की.
इस प्रोटोकॉल के अनुसार राज्य जबरन श्रम कराये जाने को रोकने के लिए नियम बनाएगा, पीड़ितों की सुरक्षा और न्याय के मुआवजे हेतु उन्हें उचित अधिकार दिए जायेंगे.
मॉरिटानिया से पहले नाइजर (अफ्रीका), नॉर्वे (यूरोप) एवं इंग्लैंड (यूरोप) ने इस प्रोटोकॉल की पुष्टि की.
इस प्रोटोकॉल के अनुसार राज्य जबरन श्रम कराये जाने को रोकने के लिए नियम बनाएगा, पीड़ितों की सुरक्षा और न्याय के मुआवजे हेतु उन्हें उचित अधिकार दिए जायेंगे.
पृष्ठभूमि
• अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार 21 मिलियन पुरुष, महिलाएं एवं बच्चे - जबरन श्रम, तस्करी, ऋण के कारण जबरन रखे गये एवं गुलामी जैसी स्थिति में जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
• इन जबरन श्रम करने वाले लगभग 19 लाख लोगों का निजी अर्थव्यवस्था में व्यक्तियों अथवा उद्यमियों द्वारा शोषण किया जा रहा है.
• इसके अतिरिक्त 2.2 मिलियन (10 प्रतिशत) लोग राज्य अथवा अर्धसैनिक बलों द्वारा लगाये गये जबरन श्रम के कानूनों के कारण कष्टदायक जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
• इस मुद्दे का हल निकालने के लिए अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन में सरकारों, कर्मचारियों एवं कार्यकर्ताओं ने इस प्रोटोकॉल को अपनाने का निर्णय लिया.
• जबरन श्रम कराये जाने को रोकने के अनुपूरक उपायों को अपनाने की भी सिफारिश की गयी.
• यदि व्यापक रूप से आईएलओ के सदस्य देशों द्वारा इस प्रोटोकॉल को अपनाया जाए तो विश्व से जबरन श्रम को पूरी तरह समाप्त किया जा सकता है.
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