श्रीलंका पर मानवाधिकार जांच की संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त की रिपोर्ट जारी-(22-SEP-2015) C.A

| Tuesday, September 22, 2015
16 सितंबर 2015 को जेनेवा, स्विट्जरलैंड में श्रीलंका पर मानवाधिकार जांच (ओआईएसएल) की संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त की रिपोर्ट जारी कर दी गई. संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त ने ओआईएसएल की नियुक्ति 2014 में की थी.

ओआईएसएल ने 2002 और 2011 के बीच श्रीलंका में चले गृह युद्ध के अंतिम चरण की जांच की और कहा कि युद्ध संबंधित अपराध और मानवता विरोधी अपराध दोनों ही पक्षों–श्रीलंकाई सुरक्षा एजेंसियों और लिबरेशन टाइगर्स तमिल ईलम (एलटीटीई), के द्वारा किए गए.
पीड़ितों को न्याय देने के लिए, रिपोर्ट में अंतरराष्ट्रीय न्यायाधीशों, वकीलों, अभियोग पक्ष के वकीलों और जांचकर्ताओं द्वारा हाइब्रिड विशेष अदालत के गठन की सिफारिश की गई है.

रिपोर्ट में दर्ज किए गए गंभीर अपराधों में से कुछ हैं–

गैर कानूनी हत्याएं दोनों ही पक्षों के साथ–साथ सुरक्षा बलों से संबंधित संसदीय समूहों ने किए. श्रीलंकाई सुरक्षा बलों और संबंधित अद्धसैनिक बलों द्वारा कथित रूप से प्रताड़ित किए जाने वालों में शामिल हैं तमिल राजनीतिज्ञ, मानवाधिकार कार्यकर्ता, पत्रकार और आम जनता. 

लिट्टे पर भी तमिल, मुसलमान और सिंहली नागरिकों को आत्मघाती बम विस्फोटों और सुरंग से किए गए हमलों के जरिए  मार डालने का आरोप रिपोर्ट में लगाया गया है. इसके अलावा लिट्टे पर सरकारी अधिकारियों, शिक्षाविद् और तमिल राजनीति के असहमत नेताओं समेत अन्य लोगों की हत्या करने का भी आरोप है.

यौन और लिंग आधारित हिंसा- श्रीलंकाई सुरक्षा बलों द्वारा अक्सर बेहद क्रूरता के साथ यौन हिंसा  बंदियों पर किया जाता था. इसमें पुरुष और महिलाएं समान रूप से प्रताड़ित किए जाते थे और सैन्य बलों से संबंधित एक भी यौन हिंसा अपराधी को अब तक दोषी करार नहीं दिया गया है. 

बलपूर्वक गुमशुदगीः 26–वर्षों के सैन्य संघर्ष के दौरान दशकों तक हजारों श्रीलंकाई इससे प्रभावित रहे. युद्ध के आखिरी चरण के दौरान बड़ी संख्या में आत्मसमर्पण करने वाले लोग गायब हो गए और आज भी उनका कोई पता नहीं चल पाया है. संघर्ष से सीधे तौर पर नहीं जुड़ने वाले कई अन्य लोग भी गायब हो गए, आमतौर पर 'ह्वाइट वैन' में अपहरण होने के बाद. 

अत्याचार और क्रूर, अमानवीय या अपमानजनक व्यवहार के अन्य रूपः दशक भर में श्रीलंकाई सुरक्षा बलों द्वारा दी जाने वाली यातना के बारे में सभी को पता था और अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले केंद्रों में ऐसे कमरे थे जहां यातना के लिए उपकरण रखे थे जो यातना के इस्तेमाल की पूर्वचिन्तित और व्यवस्थित प्रकृति को दर्शाता है. 

बच्चों की भर्ती और शत्रुता में उनका इस्तेमाल, साथ ही व्यस्कों का अपहरण और जबरन बहालीः लिट्टे और अर्धसैन्य करुणा समूह जिसने 2004 में लिट्टे से अलग होने के बाद सरकार का समर्थन किया, द्वारा सैन्य संघर्ष में बच्चों की बड़े पैमाने पर भर्ती और इस्तेमाल के सबूत मिले हैं. बच्चों को अक्सर घरों, स्कूलों, मंदिरों और नाका चौकियों से बल पूर्वक उठाकर ले जाया जाता था और बुनियादी प्रशिक्षण के बाद उन्हें लड़ने के लिए भेज दिया जाता था. 

नागरिकों और नागरिकों की संपत्ति पर हमला- सरकार द्वारा घोषित 'नो फायर जोन्स' तथा लिट्टे के नियंत्रण वाले इलाकों के घनी आबादी वाले क्षेत्र के अस्पतालों और मानवीय सुविधाओं पर सरकारी बलों द्वारा बार–बार हमले किए गए.
 
मानवीय सहायता लेने से इनकार- युद्ध के तरीके के तौर पर नागरिकों को भूखमरी के लिए विवश करने हेतु सरकार ने उत्तरी प्रांत में वन्नी में पर्याप्त खाद्य और चिकित्सा सहायता को जानबूझ कर बंद किया था. 

शिविरों में आंतरिक विस्थापितों (आईडीपी) के रहने के दौरान उल्लंघन- करीब 300000 आईडीपी को कैंपों में अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत स्वीकार्य स्वतंत्रता से वंचित रहना पड़ा.

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