केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा डाईक्लोफेनाक की बिक्री पर प्रतिबन्ध-(20-SEP-2015) C.A

| Sunday, September 20, 2015
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने 18 सितंबर 2015 को डाईक्लोफेनाक की बिक्री पर रोक लगा दी तथा इसके बहुउपयोग पर भी प्रतिबन्ध लगाया. अब से यह केवल एक खुराक के पैकेट में ही उपलब्ध होगी.

गौरतलब है कि डाईक्लोफेनाक का प्रयोग वर्ष 2006 से मवेशियों के उपचार के लिए किया जाता है.

यह निर्णय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की सिफारिश के आधार पर विलुप्त होते गिद्धों की रक्षा हेतु लिए गया.

डाईक्लोफेनाक पर प्रतिबद्ध क्यों ?

डाईक्लोफेनाक एक नॉन स्टीरियोडल एंटी-इन्फ्लामेटरी दवा है. इसका उपयोग हल्के दर्द एवं गठिया अथवा जोड़ों के दर्द के उपचार में किया जाता है,

मानव प्रयोग के अतिरिक्त यह मवेशियों के उपचार में भी काम आने वाली दवा है.

यह दवा मवेशियों को हानि नहीं पहुंचाती किन्तु गिद्धों के लिए जानलेवा है. मरे हुए जानवरों को खाते समय गिद्ध इस दवा के संपर्क में आते हैं. शोधों से यह साबित हुआ है कि इस दवा के संपर्क में आने पर गिद्धों के किडनी एवं लीवर निष्क्रिय हो जाते हैं.

इससे पहले, केंद्र सरकार वर्ष 2006 में डाईक्लोफेनाक का उपयोग मवेशियों के लिए भी प्रतिबंधित कर चुकी है.

यह पाया गया है कि मानव उपयोग के लिए बाज़ार में मौजूद दवा का मवेशियों पर भी दुरुप्रयोग किया जा रहा है.

पर्यावरण की दृष्टि के अतिरिक्त गिद्धों का सांस्कृतिक महत्व भी है.

गिद्धों के विलुप्त होने से भारतीय जोरोस्ट्रियन पारसी समुदाय पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है क्योंकि वे मानव लाश के निपटान हेतु गिद्धों का प्रयोग करते हैं. गिद्धों के विलुप्त होने पर वे लोग इस निपटान हेतु अन्य मार्ग अपनाने पर विवश हो गये हैं.

इसलिए गंभीर रूप से लुप्तप्राय प्रजातियों के संरक्षण हेतु, आईयूसीएन द्वारा इसे संकटग्रस्त प्रजातियों की लाल सूची में रखा गया है, सरकार ने इस दवा को प्रतिबंधित करने का निर्णय लिया.

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