एशिया सिद्धांत और चीन की दक्षिण चीन सागर में सक्रियता झी और ओबामा के बीच बैठक की स्थिति बना रहा है-(20-SEP-2015) C.A

| Sunday, September 20, 2015
एशिया सिद्धांत (पिवोट टू एशिया डॉक्ट्राइन):  एशिया प्रशांत क्षेत्र के साथ और अधिक एवं समर्थक सक्रिए भागीदारी हेतु अमेरिकी प्रशासन नीति.
एशिया– प्रशांत क्षेत्र सितंबर 2015 के तीसरे सप्ताह में सुर्खियों में था क्योंकि अमेरिकी और चीनी प्रशासन ह्वाइट हाउस में शिखर सम्मेलन वार्ता के लिए कमर कस रहे थे.

22 सितंबर 2015 से शुरु होने वाले चीन के राष्ट्रपति झी जिनपिंग के चार दिनों की अमेरिका यात्रा के दौरान उनका अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा से मिलने का कार्यक्रम है.

पिवट टू एशिया – पेसेफिक ओबामा प्रशासन की नीति है जो एशिया प्रशांत क्षेत्र के साथ अधिक और सक्रिए भागीदारी को दर्शाता है. इसकी घोषणा 2011 में की गई थी.
नीति के तहत, अगले दशक में अमेरिकी शासन के सबसे महत्वपूर्ण कार्यों में से एक कार्य होगा– एशिया प्रशांत क्षेत्र में कूटनीतिक, आर्थिक, सामरिक और अन्य तरीकों से निवेश में काफी हद तक बढोतरी.

 नीति के लिहाज से देखें तो यह एक देश द्वारा परेशानियों से घिरे मध्य पूर्व और दक्षिण एशियाई क्षेत्रों को अधिक स्थिर और शांतिपूर्ण एशिया– प्रशांत क्षेत्र बनाने हेतु व्यापक संलग्नता के अलावा कुछ भी नहीं है.

अमेरिका के अनुसार, विश्व में सामरिक, राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्रों में वैश्विक नेतृत्व बनाए रखने के लिए नई रणनीति अनिवार्य है क्योंकि यह क्षेत्र वैश्विक अर्थव्यवस्था का केंद्र बन गया है.

हालांकि, कुछ लोगों को कहना है कि नीति का मुख्य उद्देश्य 'उभरते चीन' को रोकना है जो अमेरिका के आगामी वर्षों में विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के लिए काफी प्रयास कर रहा है.

अमेरिका का भारत के साथ अपने संबंधों को मजबूत बनाना, प्रशांत क्षेत्र में सैन्य उपस्थिति बढ़ाना, दक्षिण चीन सागर में चीन के बढ़ते दखल का जोरदार विरोध करना, चीन के साथ अमेरिका के संबंधों और इस क्षेत्र को संतुलित करने के लिए अमेरिका के प्रयासों के रूप मे देखा जा सकता है.

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