गुजरात विधानसभा ने 31 मार्च 2015 को आतंकवाद
व संगठित अपराध रोकने हेतु 'गुजटोक' विधेयक (Gujarat Control of Terrorism and organized Crime Bill
2015) पारित किया. यह विधेयक पूर्व में विवादित रही 'गुजकोक' विधेयक के स्थान पर पारित हुआ. गुजकोक
विधेयक को पहले तीन बार गुजरात विधानसभा से पारित किया जा चुका था, लेकिन राष्ट्रपति ने आपत्तिजनक प्रावधानों के कारण उसे मंजूरी नहीं दी.
विदित हो कि गुजरात सरकार पिछले 12 साल से आतंकवाद व संगठित अपराध रोकने के लिए कठोर कानून बनाने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस के कड़े विरोध के बीच इस विधेयक को नए नाम से चौथी बार विधानसभा से पारित कर दिया गया. गुजरात के गृह राज्य मंत्री रजनीकांत पटेल ने विधानसभा में गुजरात कंट्रोल ऑफ टेररिज्म एंड आर्गनाइज्ड क्राइम (जीसीटीओसी) विधेयक 2015 पेश किया.
गुजकोक/गुजटोक विधेयक की पृष्ठभूमि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते इस विवादित विधेयक को तीन बार पारित कर राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया था, लेकिन इसे मंजूरी नहीं मिली.
महाराष्ट्र के मकोका की तरह बनाए गए गुजकोक को वर्ष 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और 2008 में प्रतिभा पाटिल लौटा चुकी हैं. इसके बाद 2009 में इसे तीसरी बार पारित कर राष्ट्रपति को भेजा गया था, लेकिन यह अभी भी लंबित है.
प्रावधानों पर आपत्ति
• इस विधेयक की धारा 14 के अनुसार किसी आरोपी की फोन पर बातचीत का टेप सुबूत के तौर पर कोर्ट में मान्य होगा. इस पर किसी अन्य कानून का कोई असर नहीं होगा. आपत्ति:- भारतीय साक्ष्य अधिनियम में फोन पर बातचीत को सुबूत नहीं माना जाता है.
• धारा 16 के अनुसार आरोपी का पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी के समक्ष दर्ज कराया गया बयान सुबूत माना जाएगा. आपत्ति:- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज बयान को ही सुबूत माना जाता है.
• धारा 20 (2) (बी) के अनुसार जांच पूरी करने या आरोप पत्र दायर करने की तय अवधि 180 दिन तक बढ़ाई जाएगी. आपत्ति:- वर्तमान में 90 दिन में आरोप पत्र पेश न हो तो आरोपी को रिहा कर दिया जाता है. छह माह तक बिना आरोप जेल में रखना अनुचित.
• धारा 20 (4) के तहत किसी आरोपी को निजी मुचलके पर रिहा नहीं किया जा सकेगा. आपत्ति:- यह प्रावधान असंवैधानिक है. यह आरोपी की रिहाई के अधिकार के खिलाफ है.
• गुजटोक में दर्ज केस की सुनवाई सिर्फ विशेष अदालतों में ही होगी. आपत्ति:- विशेष अदालतों में सुनवाई में देरी होने पर आरोपी त्वरित न्याय से वंचित रहेगा.
विदित हो कि गुजरात सरकार पिछले 12 साल से आतंकवाद व संगठित अपराध रोकने के लिए कठोर कानून बनाने की कोशिश कर रही है. कांग्रेस के कड़े विरोध के बीच इस विधेयक को नए नाम से चौथी बार विधानसभा से पारित कर दिया गया. गुजरात के गृह राज्य मंत्री रजनीकांत पटेल ने विधानसभा में गुजरात कंट्रोल ऑफ टेररिज्म एंड आर्गनाइज्ड क्राइम (जीसीटीओसी) विधेयक 2015 पेश किया.
गुजकोक/गुजटोक विधेयक की पृष्ठभूमि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री रहते इस विवादित विधेयक को तीन बार पारित कर राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा गया था, लेकिन इसे मंजूरी नहीं मिली.
महाराष्ट्र के मकोका की तरह बनाए गए गुजकोक को वर्ष 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम और 2008 में प्रतिभा पाटिल लौटा चुकी हैं. इसके बाद 2009 में इसे तीसरी बार पारित कर राष्ट्रपति को भेजा गया था, लेकिन यह अभी भी लंबित है.
प्रावधानों पर आपत्ति
• इस विधेयक की धारा 14 के अनुसार किसी आरोपी की फोन पर बातचीत का टेप सुबूत के तौर पर कोर्ट में मान्य होगा. इस पर किसी अन्य कानून का कोई असर नहीं होगा. आपत्ति:- भारतीय साक्ष्य अधिनियम में फोन पर बातचीत को सुबूत नहीं माना जाता है.
• धारा 16 के अनुसार आरोपी का पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी के समक्ष दर्ज कराया गया बयान सुबूत माना जाएगा. आपत्ति:- दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत किसी मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज बयान को ही सुबूत माना जाता है.
• धारा 20 (2) (बी) के अनुसार जांच पूरी करने या आरोप पत्र दायर करने की तय अवधि 180 दिन तक बढ़ाई जाएगी. आपत्ति:- वर्तमान में 90 दिन में आरोप पत्र पेश न हो तो आरोपी को रिहा कर दिया जाता है. छह माह तक बिना आरोप जेल में रखना अनुचित.
• धारा 20 (4) के तहत किसी आरोपी को निजी मुचलके पर रिहा नहीं किया जा सकेगा. आपत्ति:- यह प्रावधान असंवैधानिक है. यह आरोपी की रिहाई के अधिकार के खिलाफ है.
• गुजटोक में दर्ज केस की सुनवाई सिर्फ विशेष अदालतों में ही होगी. आपत्ति:- विशेष अदालतों में सुनवाई में देरी होने पर आरोपी त्वरित न्याय से वंचित रहेगा.
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