पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने सैन्य अदालतों द्वारा फांसी की सज़ा पर रोक लगायी-(18-APR-2015) C.A

| Saturday, April 18, 2015
पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने 16 अप्रैल 2015 को सैन्य अदालतों द्वारा दिए गए मौत की सजा के आदेश को निलंबित कर दिया. यह निलंबन अप्रैल 2015 में सैन्य अदालतों द्वारा कैदियों को दी गयी मौत की सज़ा की वैधता साबित होने तक लागू रहेगा.

कोर्ट का यह आदेश सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा दायर एक याचिका में फांसी की सज़ा पर रोक लगाने की मांग के बाद आया है. यह याचिका मानवाधिकार कार्यकर्ता तथा वकील अस्मा जहांगीर द्वारा दायर की गई थी.

इस याचिका द्वारा सैन्य अदालतों में कैदियों की निष्पक्ष सुनवाई के प्रावधानों को चुनौती दी गयी. इसमें यह भी कहा गया कि सैन्य अदालतों में होने वाली सुनवाई न तो जनता के सम्मुख होती है न ही पारदर्शी होती है. इसमें सैन्य अदालतों द्वारा सिद्धांतों का पालन नहीं किये जाने का आरोप भी लगाया गया.

पृष्ठभूमि
पाकिस्तान ने 19 दिसम्बर 2014 को उग्रवादियों द्वारा पेशावर स्थित सेना के एक स्कूल में लगभग 150  छात्रों और कर्मचारियों की हत्या के बाद फांसी पर पिछले 7 वर्ष से लगाया गया प्रतिबन्ध हटा लिया गया.


संसद ने एक संवैधानिक संशोधन पारित कर के सेना को समानांतर अधिकार देते हुए संदिग्ध आतंकवादियों पर सैन्य अदालतों में मुकदमा चलाने की व्यवस्था कायम की ताकि इस मामलों पर तेज़ी से काम हो सके. इस संशोधन के बाद जनवरी 2015  में नौ सैन्य अदालतें स्थापित की गयीं.


फांसी पर लगे प्रतिबन्ध को हटाये जाने के बाद 60 कैदियों को नागरिक अदालतों के आदेश पर फांसी दी गयी.

मानव अधिकार समूहों के अनुसार पाकिस्तान में मौत की सज़ा प्राप्त कैदियों की संख्या 8000 से अधिक है.  मार्च 2015 में सरकार ने घोषणा की कि जिन कैदियों के अपील तथा क्षमादान अधिकार ख़ारिज कर दिए गए हैं उन्हें फांसी दी जाएगी

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