कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्तियों से भेदभाव समाप्त करने के लिए 20वें विधि आयोग की रिपोर्ट-(09-APR-2015) C.A

| Thursday, April 9, 2015
सेवानिवृत्त न्यायधीश अजीत प्रकाश शाह की अध्यक्षता में 20 वें विधि आयोग ने 7 अप्रैल 2015 को कुष्ठ रोग से प्रभावित लोगों के खिलाफ भेदभाव समाप्तशीर्षक से 256वीं रिपोर्ट विधि एवं न्याय मंत्रालय को प्रस्तुत की.
रिपोर्ट में कुष्ठरोगियों के साथ होने वाले भेदभाव को समाप्त करने के लिए उन सभी कानूनों में संशोधन करने की अनुशंसा की गई है जो कुष्ठरोगियों पर अब तक लागू होते हैं.
विधि आयोग की मुख्य अनुशंसाएँ
अब कुष्ठ रोग का पूरी तरह से इलाज किया जा सकता है इसलिए यदि पति या पत्नी में किसी को भी यह रोग हो जाता है तो इस आधार पर तलाक की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. अभी तक हिंदू, मुस्लिम विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम में भी कुष्ठ रोग को तलाक का आधार बनाया गया है.
भिक्षावृत्ति निवारण कानून के तहत उपयोग किया जाने वाला शब्द कोढ़अपमानजनक है अतः इस शब्द को कानून की किताब और सरकारी दस्तावेजों से हटा देना चाहिए.
निःशक्त व्यक्ति अधियिनियम 1995 और निःशक्त व्यक्तियों का अधिकार विधेयक 2014 को या तो हटा देना चाहिए या इनकी और उचित व्याख्या करनी चाहिए क्योंकि अपने वर्तमान स्वरूपम में यह रोग से पीड़ित और उपचार से गुजरने वाले व्यक्तियों के बीच भेदभाव करने में असमर्थ है.
कुष्ठ रोगियों को स्थानीय निकाय और पंचायत चुनाव में लड़ने और पद ग्रहण करने पर रोक लगाने वाले विभिन्न कानूनों को रद्द किया जाना चाहिए.
कुष्ठ रोग अधिनियम 1898, कानून सेवा अधिनियम 1987, मोटर वाहन अधिनियम 1988 में जरूरी संशोधन किया जाना चाहिए.

भारत में कुष्ठ रोग की स्थिति

वर्ष 2014  विश्व के 58% कुष्ठ रोगी भारत में थे. 2015 से 2014 के दौरान राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम के तहत प्रत्येक वर्ष 1.25 लाख से 1.35  लाख कुष्ठ रोगियों का पता चला, जिनमे अधिकाँश बच्चे थे. भारत में इसके उपचार के रूप में विश्व स्वास्थ्य संघठन द्वारा अनुशंसित मल्टी ड्रग थेरेपी सबसे काराग साबित हुई.

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