वैज्ञानिकों ने ग्लोबल वार्मिंग के लिए उत्तरदायी एनेस्थेटिक गैसों का पता लगाया-(15-APR-2015) C.A

| Wednesday, April 15, 2015
वैश्विक वातावरण में डेसफ्लुरेन, आइसोफ्लुरेन, तथा सेवोफ्लुरेन जैसी गैसों की मौजूदगी तेज़ी से बढ़ रही है. इनकी मौजूदगी अंटार्कटिक तक पायी गयी है. 
ऑनलाइन भूभौतिकीय अनुसंधान पत्र के 13 मार्च 2015 प्रकाशित लेख मॉडर्न इन्हेलेशन एनेस्थेटिक्स: पोटेंट ग्रीन हाउस गैसेज़ इन ग्लोबल एटमोस्टफेयरमें यह खुलासा किया गया.
शोध के प्रमुख बिंदु
 :
पिछले एक दशक के दौरान डेसफ्लुरेन, आइसोफ्लुरेन, तथा सेवोफ्लुरेन गैसों की मौजूदगी न केवल भीड़-भाड़ वाले शहरी क्षेत्रों में बढ़ी है बल्कि अंटार्कटिक जैसे दूर-दराज इलाकों में भी इसे पाया गया है.
इन मेडिकल गैसों के संचय का कारण इनका चिकित्सा आवेदन के दौरान कम मेटाबोलाईज़ेशन तथा वातावरण में लगभग पूरी तरह से लुप्त हो जाना शामिल है.
 
यह खोज इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कार्बन डाइऑक्साइड के विपरीत मेडिकल गैसेज़ ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव में अधिक शक्तिशाली हैं.
उदाहरणस्वरूप ग्रीनहाउस वार्मिंग के लिए एक किलोग्राम डेसफ्लुरेन 2500 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर है.
 
इन गैसों का वर्ष 2014 में संयुक्त वैश्विक उत्सर्जन 31 लाख टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर रहा. इसमें सबसे अधिक हानिकारक गैस डेसफ्लुरेन की मौजूदगी 80 प्रतिशत है.
यह अध्ययन स्विट्जरलैंड की स्विस फेडरल प्रयोगशाला में वायुमंडलीय रसायनज्ञ के तौर पर कार्यरत शोधकर्ता मार्टिन वोल्मर एवं स्विट्जरलैंड, दक्षिण कोरिया तथा यूनाइटेड किंगडम के छह अन्य वैज्ञानिकों की टीम द्वारा किया गया.
मॉडर्न इन्हेलेशन एनेस्थेटिक्स:
अधिकतर विकसित देशों के लिए एनेस्थेटिक्स गैसों की वातावरण में मौजूदगी एक मजबूरी बन चुकी है जबकि विश्व के बहुत से देशों में आज भी नाइट्रस ऑक्साइड (N2O) तथा हेलोथेन का प्रयोग मानव एनेस्थिसियोलॉजी के लिए किया जाता है.
 
हेलोथेन का इस्तेमाल 1960-1970 के दशक के बीच प्रमुखता से किया जाता था लेकिन इसके लीवर पर विपरीत प्रभाव (हेलोथेन हैपेटाइटिस) के कारण इसका प्रयोग बंद कर दिया गया.
मेथोज़िफ्लुरेन का प्रयोग 1960
  से 1970के दशक बीच किया गया लेकिन इसके चिकित्सकीय दुष्प्रभावों के कारण इसका प्रयोग बंद कर दिया गया.
1980 में आइसोफ्लुरेन के आने से पहले तक एनफ्लुरेन एक स्वेच्छिक एनेस्थेटिक्स रहा. आइसोफ्लुरेन आज भी पशु चिकित्सा में प्रयोग किये जाने वाले एनेसथेसिया के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
 
1992 में डेसफ्लुरेन तथा सेवोफ्लुरेन
  के आने के बाद से यह व्यापक रूप से इस्तेमाल किये जा रहे हैं.

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