3 साल मोदी सरकार: अर्थव्यवस्था में सुधार हेतु, उपलब्धियां और चुनौतियां-(27-MAY-2017) C.A

| Saturday, May 27, 2017
25 मई 2017 को भारत के प्रधान मंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी ने तीन साल पूरे किए. मुख्य रूप से दो कारणों से भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय लोकतांत्रिक सरकार (एनडीए) की सत्ता में आई.
i. एनडीए II  सरकार एक ऐसी स्थिति में सत्ता में आई जब पूरा भारतवर्ष, भ्रष्टाचार,नीतिगत कमियों(नीतिगत कमजोरियों) और गठबंधन से मुक्त एक निर्णायक नेतृत्व क्षमता वाले सरकार की अपेक्षा कर रहा था.
ii. सत्तारूढ़ एकल पार्टी से अधिक उम्मीदों के पूरा होने की संभवना के कारण भी यह सरकार आई.पिछले तीन दशकों में यह पहली बार हुआ था कि एक पार्टी ने लोकसभा में पूर्ण बहुमत हासिल किया था. इससे पहले 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए चुनाव में राजीव गाँधी की पार्टी ने 404 सीटों पर जीत हासिल कर पूर्ण बहुमत प्राप्त की थी.
3 years of Modi Government achievements initiatives and challenges in economy
उपर्युक्त पृष्ठभूमि में मोदी सरकार द्वारा आर्थिक क्षेत्र में किये गए महत्वपूर्ण पहलों, उनकी उपलब्धियों और चुनौतियों की समीक्षा करने का यह उचित समय है.
मई 2014  में जब एनडीए सरकार सत्ता में आई तो अर्थव्यवस्था में सुधार उनकी मुख्य एजेंडा में शामिल था. उनका मुख्य फोकस व्यापार करने की प्रक्रिया को सरल बनाने,देश में विदेशी  निवेश को बढ़ावा देने और नियमों और प्रक्रियाओं को सरल बनाने पर था. इस क्षेत्र में इस सरकार द्वारा किये गये मुख्य पहलें हैं –
बजट सुधार:- उच्च विकास दर प्राप्त करने के लिए राजकोषीय नीति में सुधार करना बहुत महत्वपूर्ण हैं. इस दिशा में कार्य करते हुए इस सरकार द्वारा वित्त वर्ष 2017-18 से शुरू होने वाले बजट चक्र में तीन बड़े बदलावों की शुरुआत की गई. वे तीन परिवर्तन हैं -
1.सामान्य बजट के साथ रेलवे बजट का विलय
2.एक महीना पहले अर्थात 1 फरवरी को ही सामान्य बजट की प्रस्तुति की तारीख निर्धारित किया जाना
3. योजना और गैर-योजना व्यय वर्गीकरण को रद्द करना
ये सारे परिवर्तन लोगों के मांग के अनुसार,भारतीय रेल की दक्षता, अर्थव्यवस्था और प्रभावशीलता में सुधार के लिए वित्तीय वर्ष की शुरुआत में योजनाओं और कार्यक्रमों के लिए धन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से किये गए हैं.
सरल व्यापार नियम : प्रारंभ से ही इस सरकार का मानना है कि किसी भी निवेश को आकर्षित करने के लिए (विशेष रूप से एफडीआई और एफआईआई को) व्यापारिक नियमों को आसान बनाना बहुत महत्वपूर्ण है. विकसित देशों की सर्वोत्तम प्रबंधन प्रणाली और प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण की सुविधा का पूरी तरह लाभ उठाने के लिए व्यापार नियमों का लचीला और आसान होना अति आवश्यक है.
इस सन्दर्भ में सरकार ने गुड्स एंड सर्विस टैक्स (जीएसटी), विदेशी निवेश संवर्धन बोर्ड (एफआईपीबी) को समाप्त करना और आयकर रिटर्न (आईटीआर) का ई-फाइलिंग आदि से सम्बन्धित महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं.
काला धन:  अपनी पहली कैबिनेट बैठक में न्यायमूर्ति एम बी शाह के नेतृत्व में काले धन पर एक विशेष जांच दल (एसआईटी) के गठन के शुरुआत से ही काले धन के खतरे को रोकने के लिए सरकार द्वारा कई कदम उठाए गए हैं. उनमें से कुछ महत्वपूर्ण कदम हैं –
• 8 नवंबर 2016 को नरेंद्र मोदी ने यह घोषणा की कि 1000 और 500 रुपए के नोट एक लीगल टेंडर नहीं रहेंगे. अर्थात अब ये नोट प्रचलन में नहीं रहेंगे. ऐसा करने का मुख्य कारण बेहिसाब और गैरकानूनी धन पर रोक लगाना था.
• विदेशी आय को छिपाने वालों को दण्डित करने के उद्देश्य से आयकर (आईटी) अधिनियम, 1961 के स्थान पर अपूर्वदृष्ट विदेशी आय और संपत्ति अधिनियम, 2015 लाया गया.
• बेनामी लेनदेन पर प्रभावशाली तरीके से रोक लगाने के लिए बेनामी लेनदेन (निषेध) अधिनियम, 1988 के स्थान पर बेनामी लेनदेन (निषेध) संशोधन अधिनियम, 2016 लाया गया.
निष्कर्ष
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के विश्व आर्थिक आउटलुक 2017 के अनुसार भारत दुनिया के सबसे तेजी से उभरते बाजारों में से एक है. हालांकि, अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह सम्पन्नता समाज के वंचित वर्गों तक नहीं पहुंच पा रही है. अतः मोदी सरकार को इस समय निरंतर और समावेशी आर्थिक विकास को प्राप्त करने की दिशा में सक्रिय और सार्थक पहल करना चाहिए.
• 2015 में प्रिवेंशन ऑफ मनी लौंड्रिंग एक्ट, 2002 में संशोधन किया गया.
• विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), 1999 को वित्त अधिनियम, 2015 के तहत संशोधित किया गया,ताकि भारत में स्थित वैसे लोगों की जब्ती की जा सके जिन्होंने अवैध तरीके से विदेशों में कोई विदेशी मुद्रा या अचल सम्पति अर्जित की हो.
• घरेलू काले धन का पता लगाने के लिए एक नए आय प्रकटीकरण योजना(इनकम डिस्क्लोजर स्कीम) तैयार की गई .
• आर्थिक ढांचा: अर्थव्यवस्था की सक्रियता तथा उसके विकास में उच्च गुणवत्ता वाले आर्थिक आधारभूत संरचना जैसे सड़कें, बंदरगाह और बिजली महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. आर्थिक ढांचे में सुधार और विकास के लिए सरकार द्वारा निम्नांकित प्रयास किये गए हैं –
• शहरी ढांचे में विकास हेतु जून 2015 में स्मार्ट सिटीज मिशन शुरू किया गया, जिसमें 2020 तक 48000 करोड़ रुपये की लागत से  विकास कार्य किया जायेगा.
• जून 2015 में कस्बों और शहरों में बुनियादी ढांचे के विकास हेतु अटल योजना मिशन अमरुत का शुभारम्भ किया गया. इसके अंतर्गत 2020 तक 50000 करोड़ रूपये की लागत से 500 शहरों में विकास कार्य किया जायेगा.
• क्लस्टर अप्रोच के माध्यम से शहरों में प्रवास के बोझ को कम करने के उद्देश्य से स्मार्ट गाँव के विकास हेतु फरवरी 2016 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी राष्ट्रीय रर्बन मिशन का शुभारंभ किया गया.
• 2019 तक 10200 करोड़ रुपये के परिव्यय से राष्ट्रीय राजमार्गों को रेलवे क्रॉसिंग रहित बनाने के लिए सेतु भरतम परियोजना का शुभारम्भ किया गया.
• बंदरगाह आधारित आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के व्यापक उद्देश्य से 70,000 करोड़ रुपये के परिव्यय वाले सागरमाला कार्यक्रम का शुभारम्भ मार्च 2015 में किया गया.
• स्वतंत्र भारत की पहली व्यापक नागरिक उड्डयन नीति - राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन नीति का अनावरण जून 2016 में किया गया. इस नीति का मुख्य उद्देश्य जनता के लिए सस्ते  उड़ान की सुविधा हेतु इको सिस्टम तैयार करना है.
आर्थिक उपलब्धियां : वित्त वर्ष 2012-13 और 2013-14 में क्रमशः 4.5% और 4.7% की वृद्धि दर की तुलना में वित्त वर्ष 2014-15 और 2015-16 में वृद्धि दर क्रमशः 7.3% और 7.6% रही.
• आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 में वर्णित सरकार की उपलब्धियां हैं –
• मुद्रास्फीति की दर में गिरावट आई और वह 4% और 5% के बीच आंकी गई.
• बैलेंस ऑफ़ पेमेंट्स (बीओपी) की चालू खाता घाटा (सीएडी),डॉलर-रुपया विनिमय दर स्थिर होने के साथ साथ सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1% से भी कम है.
• पिछले दो सालों में एफडीआई में सुधार उपायों के कारण भारत को विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) द्वारा सबसे अधिक निवेश प्राप्त हुआ है. जीडीपी के समानुपाती(जीडीपी के  अनुपात के रूप में)2016-17 के द्वितीय तिमाही में एफडीआई प्रवाह 2015-16 में 1.7 प्रतिशत से बढ़कर 3.2 प्रतिशत हो गया है.
• दुनिया के विनिर्माण निर्यात में भारत का हिस्सा बढ़ रहा है क्योंकि देश में उच्च पूंजी प्रवाह और मुद्रास्फीति के बावजूद प्रतिस्पर्धा बनी हुई है.
• भारत में अंतरराज्यीय व्यापार द्वारा दी गई वस्तुओं की आंतरिक गतिशीलता जीडीपी का लगभग 54 प्रतिशत या अंतरराष्ट्रीय व्यापार के 1.7 गुना है.
• सभी शक्तियों को ध्यान में रखते हुए भारतीय अर्थव्यवस्था में जीडीपी के 8 से 10 प्रतिशत के बीच बढ़ने की संभावना है. वर्तमान में अन्य प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में निवेश पर वास्तविक रिटर्न की प्राप्ति के कारण भारत निवेशकों को आकर्षित कर रहा है. 

भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए चुनौतियाँ : मोदी सरकार द्वारा समेकित विकास हासिल करने हेतु निम्नांकित मुद्दों पर ध्यान देना आवश्यक है –
बढ़ती आय असमानता- एन इकोनोमी फॉर द 99 परसेंट नामक एक रिपोर्ट में ऑक्सफ़ैम ने यह बताया है कि हाल के वर्षों में भारत में आय असमानता की दर बढ़ी है. 2017 में जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत के 1 प्रतिशत सबसे अमीर लोग देश की कुल संपत्ति के 58 फीसदी हिस्सा के मालिक हैं जो कि वैश्विक आंकड़े से करीब 50 फीसदी अधिक है. भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह घातक स्थिति है और सरकार को इस समस्या से निबटने के लिए कुछ सक्रिय कदम उठाने चाहिए.
बेरोजगारी - श्रम ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, 2011-12 में बेरोजगारी दर 3.8% थी जो 2015-16 में बढ़कर 5% हो गई. 2011 में 9.3 लाख रोजगार सृजन की तुलना में भारत ने 2015 में आठ श्रमिक क्षेत्रों में केवल 1.35 लाख रोजागर ही सृजित किये. इस स्थिति में सुधार के लिए सरकार को श्रमिक और लघु उद्योगों को प्रोत्साहित करने वाले उपायों की घोषणा करनी चाहिए.
गैर निष्पादित संपत्ति- भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा घोषित किए गए विभिन्न उपायों के बावजूद गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) का मुद्दा अब भी अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा है. केंद्रीय वित्त मंत्रालय और भारतीय रिज़र्व बैंक को एनपीए की समस्या को कम करने के लिए बैंकों के साथ मिलकर अधिक समन्वित उपायों को शुरू करना चाहिए.
निष्कर्ष
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के विश्व आर्थिक आउटलुक 2017 के अनुसार भारत दुनिया के सबसे तेजी से उभरते बाजारों में से एक है. हालांकि, अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह सम्पन्नता समाज के वंचित वर्गों तक नहीं पहुंच पा रही है. अतः मोदी सरकार को इस समय निरंतर और समावेशी आर्थिक विकास को प्राप्त करने की दिशा में सक्रिय और सार्थक पहल करना चाहिए.

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