क्या महिलाओं को मिल सकता है तीन तलाक खारिज करने का हक: सुप्रीम कोर्ट-(18-MAY-2017) C.A

| Thursday, May 18, 2017
उच्चतम न्यायालय ने 17 मई 2017 को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से पूछा कि क्या महिलाओं को ‘निकाहनामा’ के समय तीन तलाक को ना कहने का विकल्प दिया जा सकता है.
प्रधान न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने यह भी कहा कि क्या सभी ‘काजियों’ से निकाह के समय इस शर्त को शामिल करने के लिए कहा जा सकता है.
पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर भी शामिल हैं. तीन तलाक, बहुविवाह और निकाह हलाला को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पीठ के समक्ष चल रही सुनवाई का आज पांचवां दिन है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने 16 मई 2017 को उच्चतम न्यायालय से कहा था कि ये आस्था का विषय है और संवैधानिक नैतिकता के आधार पर इसकी पड़ताल नहीं की जा सकती. तीन तलाक का पिछले 1400 साल से जारी है.
इससे पहले तीन तलाक के मुद्दे की तुलना भगवान राम के अयोध्या में जन्म होने की पौराणिक मान्यता से किया गया है.
पृष्ठभूमि:
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ में 11 मई 2017 को मुस्लिम महिलाओं के अधिकार और उनके जीवन से संबंधित तीन तलाक, निकाह हलाला और बहुपत्नी प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बड़ी सुनवाई कर रही है.
प्रधान न्यायाधीश जगदीश सिंह खेहर की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ इससे संबंधित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
सुप्रीम कोर्ट में होने वाली इस सुनवाई में इनमें पांच याचिकाएं मुस्लिम महिलाओं ने दायर की हैं, जिसमें मुस्लिम समुदाय में प्रचलित तीन तलाक की प्रथा को चुनौती देते हुए इसे असंवैधानिक बताया गया है.

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