जीवाश्म ईंधन चालित कारें अगले आठ वर्षों में ख़त्म हो जाएंगी: अध्ययन-(24-MAY-2017) C.A

| Wednesday, May 24, 2017
कैलिफोर्निया स्थित स्टैंडफोर्ड यूनिवर्सिटी की तरफ से प्रकाशित स्टडी के अनुसार जीवाश्म ईंधन से चलने वाली कारें आगामी आठ वर्षों के अंदर पूरी तरह से ख़त्म हो जाएंगी. 
अध्ययन के बाद स्टैंडफोर्ड के अर्थशास्त्री टोनी सेबा का मानना है कि तेल का वैश्विक कारोबार साल 2030 तक आते-आते ख़त्म हो जाएगा. हाल ही में जारी अध्ययन रिपोर्ट में टोनी ने परिवहन में क्रांतिकारी बदलाव का जिक्र किया है. टोनी सेबा के अनुसार जल्द से जल्द यह दुनियां भर में कारें पूरी तरह से इलैक्ट्रिक हो जाएगी. 

टोनी सेबा का कहना है कि जो लोग कारें खरीदना चाहेंगे उनके पास इलैक्ट्रिक गाड़ियां खरीदने के अलावा दूसरा और कोई विकल्प नहीं होगा जो एक समान तकनीक पर ही चलेंगी. इलैक्ट्रिक से चलनेवाली कारें सड़कों पर उतरेगी तो वह ट्रांसपोर्ट व्यावसाय की पूरी तस्वीर को बदल कर रख देगी.

टोनी सेबा के अनुसार ऐसा इसलिए होगा क्योंकि इलैक्ट्रिक गाड़ियां जिनमें कार, बस और ट्रक शामिल हैं उनकी परिवहन लागत काफी कम आएगी. जिसकी वजह से पूरी पेट्रोलियम इंडस्ट्री बंदी की कगार पर आ जाएगी.

इलैक्ट्रिक कारें देश का भविष्य-
‘री-थिंकिंग ट्रांसपोर्टेशन 2020-30’ शीर्षक के साथ जारी स्टडी में इस बात का विस्तार से वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार लोग इलैक्ट्रिक कारों की तरफ स्वीच करेंगे क्योंकि उन्हें मौजूदा पेट्रोल और डीजल से चलने वाली कारों के मुकाबले मैंटिनेंस में इलैक्ट्रिक कारें करीब दस गुणा ज्यादा सस्ती पड़ेगी.
इलैक्ट्रिक कारों की लाइफ कई गुणा अधिक-
री-थिंकिंग ट्रांसपोर्टेशन 2020-30’ स्टडी रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि इलैक्ट्रिक कारों की लाइफ 1 मिलियन (16,09,344 किलोमीटर) माइल्स है जबकि उसकी तुलना में पेट्रोल और डीजल से चलनेवाली कारों की लाइफ सिर्फ 2 लाख माइल्स (3,21,000 किलोमीटर के करीब) ही है.

टोनी सेबा के अनुसार अगले एक दशक से भी कम समय में लोगों के लिए पेट्रोल पंप, मैकेनिक और यहां तक कि उन गाड़ियों के मैकेनिक्स को ढूंढ़ना मुश्किल हो जाएगा.
टोनी सेबा द्वारा जारी किए गए अध्ययन के अनुसारजो पेट्रोल-डीजल गाड़ियों के डीलर्स हैं वह साल 2024 तक मार्केट में शायद ही दिखें. 

मौजूदा इलैक्ट्रिक गाड़ियों में कई कमियां-
ट्रांसपोर्ट बाज़ार के विशेषज्ञों के अनुसार दुनियाभर में एक ट्रांजिशनल फेज आएगा और करीब 98 फीसदी गाड़ियां पूरी तरह से इलैक्ट्रिक पर चलेंगी. उनका मानना है कि अभी भी कई इलैक्ट्रिक गाड़ियां बनकर आ रही हैं लेकिन वो कारगर नहीं है, जिसकी वजह है चार्जिंग के बाद ज्यादा लंबा ना चल पाना. मॉर्डन इलैक्ट्रिकल गाड़ियां आएंगी वह एक बार चार्ज होने के बाद करीब तीन सौ किलोमीटर तक चल सकेंगी. 

इलैक्ट्रिक गाड़ियों की सफलता के कारण-
इलैक्ट्रिक गाड़ियां जहां पेट्रोल और डीजल इंजन की गाड़ियों के मुकाबले काफी सस्ती होंगी क्योंकि उसमें इलैक्ट्रिक के मुकाबले पार्ट्स काफी कम लगे होंगे तो वहीं दूसरी तरफ उसकी मैंटिनेंस लागत भी काफी कम होगी.

टिप्पणी-
जिस वक्त लोग पेट्रोल और डीजल गाड़ियों को छोड़कर इलैक्ट्रिक कारों की ओर रूख करेंगे वह फेज बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है. जिस तरह इस वक्त गाड़ियां की रिसाइक्लिंग की जाती है उसी तरफ बड़े पैमाने पर गाड़ियों की रिसाइक्लिंग की जाएगी. अगर ऐसा होता है और इलैक्ट्रिक गाड़ियां पूरी तरह से पेट्रोल और डीजल से चलनेवाली गाड़ियां की जगह ले लेती है तो उसके बाद दुनियाभर में पेट्रोल और डीजल की उपयोगिता सिर्फ नाममात्र की ही रह जाएगी. इससे वायु प्रदूषण को रोकने में मदद मिलेगी तो वहीं दूसरी तरफ लागत के हिसाब से भी यह लोगों के लिए काफी फायदेमंद साबित होगा.

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