विश्व बैंक ने शॉक वेव्स : मैनेजिंग द इंपैक्ट्स ऑफ क्लाइमेट चेंज ऑन पोवर्टी नामक शीर्षक से रिपोर्ट जारी की-(17-DEC-2015) C.A

| Thursday, December 17, 2015

दिसंबर 2015 में विश्व बैंक ने शॉक वेव्सः मैनेजिंग द इंपैक्ट्स ऑफ क्लाइमेट चेंज ऑन पोवर्टी नाम से रिपोर्ट जारी की. रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और गरीबी के मध्य दुहरे संबंध ( परस्पर क्रिया) की जांच की गयी  है और निष्कर्ष निकाला गया है कि विश्व में बढ़ती गरीबी के प्राथमिक कारकों में से एक जलवायु परिवर्तन है. 
स्थिति में सुधार के लिए रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन नीतियों से गरीबी कम करने और गरीबी कम करने के लिए बनाई गई नीतियों से जलवायु परिवर्तन को कम करने और लचीलापन लाने में योगदान हेतु दिशानिर्देश भी दिए गए हैं . 
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएं
• रिपोर्ट का मुख्य निष्कर्ष यह है कि जलवायु परिवर्त गरीबी उन्मूलन के लिए महत्वपूर्ण बाधा का प्रतिनिधित्व करता है लेकिन गरीबी पर भावी प्रभाव नीति विकल्पों द्वारा निर्धारित होंगे. 
• तीन प्रमुख चैनल हैं जिनके माध्यम से जलवायु– संवेदनशील घटनाएं पहले से ही गरीबी से बचने के लिए गरीब लोगं की क्षमता को प्रभावित कर रहे हैं– कृषि उत्पादन, पारिस्थितिकी और खाद्य सुरक्षा, प्राकृतिक आपदा एवं स्वास्थ्य. 
 कृषिः विश्व स्तर पर सीमित होने के बावजूद उप– सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया जैसे कमजोर क्षेत्रों में कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पहले से ही स्पष्ट हैं.
•छोटी अवधि में खाद्य भंडार, गरीब किसानों की बाजारों तक अच्छी पहुंच, उन्नत प्रौद्योगिकियां और जलवायु– स्मार्ट उत्पादन प्रथाएं जलवायु प्रभावों को कम कर सकती हैं.
 स्वास्थ्यः जलवायु परिवर्तन स्वास्थ्य के लिए कुछ खतरे पैदा करेगा खासकर गरीबों और कमजोर लोगों जैसे बच्चों और बुजुर्गों के लिए लेकिन बड़ी अनिश्चितताएं बनी रहेंगी जो अभी भी अनुसंधान का उभरता हुआ क्षेत्र है. 
•साल 2030 तक अगर आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन दोनों ही मौजूद हों तो अनुमान के अनुसार 100 मिलियन समेत 3.6 बिलियन लोगों में मलेरिया  होने का खतरा हो सकता है और यह जलवायु परिवर्तन की वजह से होगा. 
• स्वास्थ्य संबंधी झटके औऱ गरीब : स्वास्थ्य समस्याएं गरीबी में योगदान देती हैं क्योंकि इनकी वजह से आमदनी में कमी, स्वास्थ्य पर होने वाले खर्चो और देखभाल संबंधी जिम्मेदारी बढ़ जाती है इसलिए स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव गरीबी को कम करने की दिशा में अतिरिक्त बाधा के तौर पर दिखते हैं और ये असमानता को बढ़ाएंगे. 
 समग्र प्रभावः निराशावादी विकास परिदृष्य में साल 2030 तक जलवायु परिवर्तन 100 मिलियन से अधिक लोगों को गरीबी की गर्त में ढकेल सकता है.अगर लक्षित अनुकूलन कार्रवाई के साथ त्वरित, समावेशी और जलवायु– सूचित विकास को मिला दिया जाए तो यह संख्या 20 मिलियन तक कम की जा सकती है,
.प्राकृतिक आपदाः ये लोगों को गरीबी में ढकेल देते हैं औऱ गरीब लोगों को गरीबी से निकलने नहीं देते. आगामी दशकों में प्राकृतिक खतरों के बढ़ने की संभावना है और स्थिति और खराब होगी. 
.उपचारात्मक उपायः वित्तीय समावेशन, बीमा, सामाजिक सुरक्षा जाल और भेजा हुआ धन विभिन्न प्रकार के झटकों के खिलाफ अलग– अलग प्रकार की आबादी का बचाव करने में एक दूसरे की मदद करते हैं. 
 अल्पावधि में त्वरित, समावेशी और जलवायु– सूचित विकास गरीबी पर जलवायु परिवर्तन के अधिकांश प्रभावों ( लेकिन सभी नहीं) को रोकने में मदद कर सकते हैं. 
 त्वरित, समावेशी और जलवायु– सूचित विकास अधिकांश अल्पकालिक प्रभावों से बचा सकते हैं जबकि तत्काल गरीबी– समर्थक, उत्सर्जन– कम करने संबंधी नीतियां दीर्घकालिक प्रभावों को सीमित कर सकती हैं. 
• जलवायु परिवर्तन शमन के उपाय अल्पकालिक गरीबी उन्मूलन कार्यों के लिए खतरा नहीं हैं क्योंकि नीतियों का डिजाइन अच्छी तरह से तैयार किया गया है और उन्हें अंतरराष्ट्रीय समर्थन भी प्राप्त है. 
भारत के संबंध में रिपोर्ट
• यह दिखाने के लिए प्रत्येक वर्ष लोग गरीबी से बाहर निकलते हैं या वापस गरीबी रेखा में आ जाते हैं, इसमें इस बात की तरफ इशारा किया गया है कि बीते 25 वर्षों से अधिक की अवधि में आंध्र प्रदेश में 36 समुदायों में औसतन प्रत्येक वर्ष 14 फीसदी परिवार गरीबी से बाहर निकलते हैं और 12 फीसदी गैर गरीब परिवार गरीब परिवारों की श्रेणी में चला जाता है– जिससे गरीबी में सालाना 2 फीसदी की गिरावट हो रही है. 
• प्राकृतिक खतरों के प्रति गरीबों की कमजोरी को दर्शाने के लिए रिपोर्ट में कम कीमत वाली जमीन के कारण मुंबई के बाढ़ संभावित क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों की बात की गई है.
• भारत में उच्च – प्रभाव वाले जलवायु परिवर्तन परिदृश्य लगभग 50 मिलियन वाले गरीबी परिदृश्य (अगर लोग गरीब हैं) की तुलना में समृद्धि परिदृश्य (अगर लोगों की आमदनी अच्छी है) में 20 लाख लोगों को गरीबी के दायरे में ले आता है. 
 पूर्व चेतावनी प्रणाली– अवलोकन प्रणाली और निकासी तैयारियां मिलकर कम लागत में कई लोगों की जान बचा सकती है. 2013 में जब ओडीशा के गोपालपुर के पास फैलिन चक्रवात आया था तो इसने 100 से कुछ अधिक लोगों की जान ली थी. हालांकि ये क्षति कम नहीं थी फिर भी 1999 में ऐसे ही आए एक और चक्रवात में हुई 10,000 मौतों के मुकाबले बहुत कम है. 
• भारत में कृषि आज भी अकुशल और वंचित लोगों का मुख्य रोजगार बना हुआ है. ये परिवार कृषि लाभ या मजदूरी में किसी भी परिवर्तन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होंगें.
 खाद्य कीमतों और गरीबी में संबंधः अनुमान के अनुसार अगर खाद्य कीमतों में 50 और 100 फीसदी से वृद्धि होती है तो इससे गरीबी का स्तर क्रमशः 10 और 25 फीसदी तक बढ़ेगा. 
• अगर परिवारों की आमदनी अनुमानिक आमदनी से कम है, ये पर्यावरणीय संसाधनों से अधिक आमदनी प्राप्त करेंगे जो गरीबी और पारिस्थितिकी तंत्र की गिरावट के बीच संबंध की ओर इशारा करता है. सुंदरबन का नीचला इलाका यहां रहने वाले अधिकांश गरीब आबादी के लिए रहने के लिए अधिक मुश्किल होता जा रहा है.इस क्षेत्र में  समुद्र का स्तर तेजी से बढ़ रहा है, मिट्टी और पानी का बढ़ता खारापन, चक्रवाती तूफान और बाढ़ की समस्याएं भी बढ़ती जा रही हैं. 
• इस रिपोर्ट में कृषि प्रणालियों के जोखिम को रोकने के लिए रिपोर्ट में जलवायु प्रतिरोधी उच्च उपज किस्मों का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है. ओडीशा में यादृच्छिक नियंत्रण परीक्षण में हालिया अध्ययन में  धान की नई, बाढ़– रोधी किस्म के उपयोग के लाभों के बारे में बतया गया है जो अभी सबसे लोकप्रिय किस्म की तुलना में 45 फीसदी अधिक उपज प्रदान करेगा. 
• घरेलू सर्वेक्षण में पाया गया कि कुछ स्थानों पर अंतिम संस्कार का खर्च कभी– कभी स्वास्थ्य खर्चोंकी तुलना में गरीबी का मुख्य कारण है. एक सर्वेक्षण के अनुसार गुजरात के करीब 85 फीसदी परिवार ने यह माना कि स्वास्थ्य और अंतिम संस्कार के खर्च गरीबी के प्रमुख कारण हैं. 
•जबकि विकसित देशों में मनोवैज्ञानिक कारक अंतर्व्यैक्तिक संघर्षों से संबंधित होते हैं, भारत जैसे कम विकसित देशों में कम आमदनी गुस्सा की वजह है जिसकी वजह से अपराध के दर में बढ़ोतरी हो सकती है. 
• संयंत्र स्तर पर भारतीय विनिर्माण कामगारों की दक्षता गर्म दिनों में बहुत कम हो जाती है, माइनस 2.8 फीसदी प्रति डिग्री सेंटिग्रेट. 
• सिर्फ चीन और भारत में ही रुग्णता और मृत्यु दर के मामले में परिवेशी वायु प्रदूषण की अनुमानित लागत करीब 1.9 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर सालाना है.

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