ईसाई पर्सनल लॉ के तहत चर्च कोर्ट में तलाक कानूनी तौर पर मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट-(21-JAN-2017) C.A

| Saturday, January 21, 2017
ईसाई पर्सनल लॉ के तहत चर्च संबंधी ट्रिब्यूनल से लिया गया तलाक को कानूनी रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने 19 जनवरी 2017 को दिया. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार ऐसे तलाक धार्मिक या चर्च हेतु महत्वपूर्ण हो सकता है, किन्तु यह कानून से ऊपर नहीं है. ईसाई दंपतियों द्वारा कानूनी रूप से तलाक तभी मान्य होगा, जब दम्पति ने इंडियन डाइवोर्स एक्ट के तहत तलाक लिया हो.

यह निर्णय चीफ जस्टिस जेएस खेहर और जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने दिया. पीठ ने ऐसे ही मामले में कर्नाटक कैथलिक एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सी पाइस की याचिका को सुनवाई के बाद खारिज कर दिया.  
याचिका में पाइस ने चर्च कोर्ट के तलाक को कानूनी रूप से मान्यता प्रदान करने की मांग की थी. न्यायलय ने स्पष्ट किया कि 1996 में मॉली जोसेफ बनाम जॉर्ज सेबेस्टियन केस में पूर्व में ही निर्णय दिया जा चुका है.
याचिका में मुस्लिम पर्सनल लॉ को बनाया आधार-
  • याचिका कर्ता सी पाइस की ओर से प्रस्तुत की गयी याचिका में वरिष्ठ एडवोकेट सोली सोराबजी ने तर्क दिया कि जब मौखिक तीन तलाक को कानूनी मान्यता मिली है तो कैनन लॉ (ईसाइयों का पर्सनल लॉ) के तहत दिए तलाक को क्यों नहीं मिलनी चाहिए?
  • याचिकाकर्ता ने यह भी मांग की कि जब भी क्रिमिनल कोर्ट में बाइगेमी के मामले में सुनवाई हो तो कैथलिक पर्सनल लॉ को ध्यान में रखा जाना चाहिए.
केंद्र सरकार- तलाक का अधिकार सिर्फ न्यायालय के पास-
  • केंद्र सरकार ने वरिष्ठ एडवोकेट सोली सोराबजी ने तर्क का विरोध किया. केंद्र सरकार के अनुसार कैनन लॉ, इंडियन क्रिश्चियन (ईसाई) मैरिज एक्ट 1872 और डाइवोर्स (तलाक) अधिनियम 1869 पर प्रभावी नहीं हो सकता.
  • शादी खत्म करने का आदेश यानि तलाक का अधिकार सिर्फ न्यायालय का अधिकार क्षेत्र है.
  • न्यायालय पूर्व में ही स्पष्ट कर चुका है कि चर्च संबंधी ट्रिब्यूनल का आदेश कोर्ट के लिए बाध्यकारी नहीं है.
  • कर्नाटक कैथलिक एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सी पाइस की यह याचिका सुप्रीम कोर्ट ने वर्ष 1996 के फैसले के दृष्टिगत खारिज कर दी.
आदेश-
सुप्रीम कोर्ट ने 1996 के फैसले के दृष्टिगत यह स्पष्ट किया कि वर्ष 1996 के फैसले में ईसाइयों में शादी और तलाक का प्रावधान साफ किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार यदि संसद ने कोई कानून बना दिया है तो वही प्रभावी माना जाएगा, न कि पर्सनल लॉ या कोई अन्य परम्परा. चर्च कोर्ट को ऐसा कोई भी आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है, जिसमे दम्पतियों के मध्य तलाक माँगा गया हो. तलाक देने का अधिकार सिर्फ कोर्ट को ही है.

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