बार-बार अध्यादेश जारी करना संविधान के साथ 'धोखा': सर्वोच्च न्यायालय-(05-JAN-2017) C.A

| Thursday, January 5, 2017


सर्वोच्च न्यायलय ने सरकारों को अध्यादेश जारी करने की शक्ति को सीमित किया है. इसके तहत केन्द्र या राज्य सरकार किसी मामले में बार-बार अध्यादेश जारी नहीं कर सकती. सरकार द्वारा बार-बार अध्यादेश जारी करना संविधान के साथ धोखाधड़ी है.
यह आदेश सर्वोच्च न्यायालय एक याचिका पर सुनवाई के बाद जारी किए. यह फैसला बिहार सरकार द्वारा 1989 से 1992 के मध्य बिहार राज्य सरकार द्वारा 429 निजी संस्कृत विद्यालयों को अधिकार में लेने हेतु जारी श्रृंखलबद्ध अध्यादेशों के खिलाफ दायर याचिका पर आया.

मुख्य तथ्य-
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार बार-बार अध्यादेश जारी करना लोकतांत्रिक विधायी प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाना है.
  • मुख्यतया जब सरकार अध्यादेशों को विधानमंडल के समक्ष पेश करने से लगातार परहेज करे.
  • यह आदेश सात न्यायाधीशों वाली संवैधानिक पीठ ने 6-1 के बहुमत से पारित किया.
  • सर्वोच्च न्यायालय के आदेश में अध्यादेश फिर से जारी करना संवैधानिक रूप से 'अस्वीकार्य' कहा गया है.
  • न्यायालय के अनुसार यह प्रक्रिया संवैधानिक योजना को नुकसान पहुंचाने वाली है.
  • संवैधानिक योजना में अनुच्छेद 213 और 123 के तहत अध्यादेश बनाने की सीमित शक्ति राष्ट्रपति और राज्यपालों को ही प्रदान की गई है.
  • संसद या विधानसभा के सत्र में न रहने के कारण आपात स्थिति हेतु यह अधिकार प्रदान किए गए हैं
सर्वोच्च न्यायालय का आदेश-
  • संवैधानिक पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड ने न्यायमूर्ति शरद अरविंद बोबडे, न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल, न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित, धनंजय चंद्रचूड और न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की ओर से बहुमत का फैसला लिखते हुए स्पष्ट किया कि "किसी अध्यादेश को विधानमंडल के समक्ष पेश करने की जरूरत का अनुपालन करने में विफलता एक गंभीर संवैधानिक उल्लंघन और संवैधानिक प्रक्रिया का दुरूपयोग है."
  • संवैधानिक पीठ के सदस्यों में से असहमति वाले न्यायाधीश चीफ जस्टिस तीरथ सिंह ठाकुर और न्यायमूर्ति एमबी लोकुर का विचार था कि किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा किसी अध्यादेश को पुन: जारी करना संविधान के साथ कोई धोखा नहीं है.
  • सर्वोच्च न्यायालय ने 138 पृष्ठ के फैसले में कहा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में राष्ट्रपति और राज्यपाल कानून का समानांतर स्रोत नहीं बन सकते.
  • लोकतंत्र में विधायिका का स्थान सर्वोपरि है.
  • अध्यादेश पर विधायिका का नियंत्रण आवश्यक है.
  • भारत के राष्ट्रपति और राज्यपाल की कार्य विधि मंत्रीपरिषद की सलाह पर आधारित हैं.
अध्यादेश के बारे में-
  • जारी किए गए अध्यादेश को संसद या विधान मंडल में पेश करना अनिवार्य है.
  • यदि संसद के चालू सत्र में इसे प्रस्तुत नहीं किया गया तो सत्र शुरू होने के छह सप्ताह की अवधि के बाद उह स्वत: ही समाप्त हो जाएगा.
  • अध्यादेश को संसद में पेश करने के बाद सदन द्वारा अध्यादेश को अस्वीकार करने पर भी यह निरस्त हो सकता है.

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