मंत्रिमंडल ने अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल तकनीक विकसित करने हेतु बीएचईएल को वित्तीय मदद की मंजूरी प्रदान की-(18-AUG-2016) C.A

| Thursday, August 18, 2016
आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति ने 1,554 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाले तापीय बिजली संयंत्र के लिए अडवांस्ड अल्ट्रा सुपर क्रिटिकल (एयूएससी) प्रौद्योगिकी विकसित करने हेतु बीएचईएल की आरऐंडडी परियोजना हेतु 900 करोड़ रुपये की एकमुश्त बजटीय सहायता देने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है.
बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की.
इस परियोजना को 2017-18 से शुरू होकर तीन साल की अवधि में पूरा किया जाएगा.  
बीएचईएल को यह मदद आरऐंड परियोजना के कार्यान्वयन के लिए सकल बजटीय सहायता योजना के तहत दी जाएगी.

आरऐंडडी परियोजना के बारे में-
  • तीन सरकारी उपक्रमों- भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड (बीएचईएल), इंदिरा गांधी सेंटर फॉर एटॉमिक रिसर्च (आईजीसीएआर) और नैशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी)- ने भविष्य के तापीय बिजली संयंत्रों के लिए एयूएससी प्रौद्योगिकी विकसित करने के लिए आरऐंडडी परियोजना का प्रस्ताव दिया था.
  • इसके तहत कोयले की खपत और कार्बन डाईऑक्साइड (सीओ 2) के  उत्सर्जन घटाने की परिकल्पना की गई.
  • यह परियोजना ढाई साल की समयावधि और 1,554 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत के साथ तैयार की गई.
  • जिसमें बीएचईएल का 270 करोड़ रुपये, एनटीपीसी का 50 करोड़ रुपये, आईजीसीएआर का 234 करोड़ रुपये और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) का 100 करोड़ रुपये का योगदान होगा.
  • शेष 900 करोड़ रुपये की रकम भारी उद्योग विभाग (डीएचआई) अनुदान के रूप में देगा.
  • यह परियोजना भारतीय उद्योग को स्वदेशी तौर पर विकसित प्रौद्योगिकी एवं विनिर्माण प्रक्रियाओं के साथ उच्च दक्षता वाले कोयला बिजली संयंत्रों के डिजाइन, विनिर्माण और चालू करने में समर्थ बनाएगी.
  • इसके तहत पहली बार विदेशी कंपनियों के साथ बिना किसी तकनीकी सहयोग/ लाइसेंसिंग समझौते के उन्नत प्रौद्योगिकी वाले बड़े बिजली संयंत्र उपकरण का विनिर्माण होगा.
  • प्रस्तावित प्रौद्योगिकी अभी भी अनुसंधान चरण में है और सभी देश इस पर काम कर रहे हैं.
  • यह अभी पूरी तरह तैयार नहीं हो पाई है और न ही विश्व में कहीं भी उसे प्रदर्शित किया गया है.
  • कंसोर्टियम के साझेदार इस परियोजना पदार्थ विकास, उच्च तापमान एवं उच्च दबाव पर मिश्र धातुओं के लक्षण, तापीय अभियांत्रिकी के उन बुनियादी सिद्धांतों के आधार पर काम कर रहे हैं जो प्रस्तावित मानदंडों के आधार पर बॉयलर, वॉल्ब और वाष्प टरबाइन को डिजाइन करने में उपयोगी हैं.
  • इससे ऊर्जा संरक्षण में उच्च दक्षता हासिल करने का लक्ष्य है.
वर्तमान तकनीकी-
  • कोयले से बिजली उत्पादन करने पर वातावरण में करीब 38 प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड का प्रदूषण होता है.
  • सब-क्रिटिकल संयंत्र संयंत्र से स्रोत पर कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 20 प्रतिशत की कमी और कोयले की खपत में 20 प्रतिशत की बचत होती है.
  •  सुपर क्रिटिकल संयंत्र के मामले में यह आंकड़ा करीब 11 प्रतिशत है जो इस परियोजना को सही ठहराने के बुनियादी कारण हैं.
  • भविष्य के सभी बड़े बिजली संयंत्रों में इस प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना देश में लंबी अवधि के लिए ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित होगी.

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