केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने 24 अगस्त 2016 को सरोगेसी के नए विधेयक 2016 के मसौदे को मंजूरी दे दी. विधेयक के मसौदे का उद्देश्य सरोगेट माताओं के अधिकारों की रक्षा करना है. इससे देश में सरोगेसी के इस्तेमाल की व्यवस्था का नियमन भी किया जा सकेगा. इससे सेरोगेट मदर के अधिकार सुनिश्चित होंगे.
सरोगेसी पर नियंत्रण हेतु कानूनी व्यवस्था के अभाव में ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों सहित विभिन्न क्षेत्रों में सरोगेसी के जरिये गर्भाधान के मामले सामने आये.
- जिस कारण असामाजिक तत्वों द्वारा महिलाओं का शोषण किया जाना संभव था.
- महिलाओं के शोषण को रोकने, खासतौर पर ग्रामीण और दूरदराज के इलाकों में रोक लगाने हेतु सरकार ने देश में विदेशियों द्वारा सरोगेसी का फायदा उठाने पर पाबंदी लगाई है और एक व्यापक कानून का मसौदा तैयार किया है.
- इस प्रकिया को कानूनी दायरे में लाने और कमर्शियल सेरोगेसी पर रोक लगाना है.
- सरकार इस बिल के जरिए देश में सरोगेसी को रेग्यूलेट करने हेतु एक नया कानूनी ढांचा तैयार करना चाहती है.
- केंद्रीय मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद इस विधेयक को संसद में लाया जाएगा.
सरोगेसी विधेयक के मुख्य तथ्य-
- इस विधेयक के बाद अब विदेशियों को किराए की कोख नहीं मिल सकेगी.
- विधेयक के अनुसार अब भारतीय महिलाओं को ही परोपकार के तौर पर सरोगेसी का अधिकार होगा.
- ड्राफ्ट विधेयक में एक बोर्ड के गठन का प्रस्ताव है जो क्लीनिक को नियंत्रित और जांच करेगी.
- भारतीय नागरिकों को सिर्फ उन्हीं मामलों में सरोगेसी को मंजूरी दी जाएगी जिसमें इनफर्टिलिटी को साबित किया जाएगा.
- यह अधिकार एनआरआई और ओसीआई होल्डर के पास नहीं होगा.
- लॉ कमीशन के मुताबिक सरोगेसी को लेकर विदेशी दंपत्तियों के लिए भारत एक पसंदीदा देश बन चुका है.
- नेशनल सरोगेसी बोर्ड, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश स्तर तक स्टेट सरोगेसी बोर्ड का गठन किया जाएगा.
- बिल कमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाने और निःसंतान दंपती को नीति परक सरोगेसी की इजाजत देने के लिए लाया गया है.
- सिंगल पैरंट्स, होमोसेक्सुअल कपल, लिव-इन में रहने वालों को सरोगेसी की इजाजत नहीं दी जाएगी.
- सरोगेसी के लिए दंपति को कम से कम दो साल शादीशुदा होना जरूरी है
क्या है सरोगेसी-
- सरोगेसी एक महिला और एक दंपति के बीच का एक एग्रीमेंट है.
- जो अपना खुद का बच्चा चाहता है.
- सामान्य शब्दों में सरोगेसी का मतलब है कि बच्चे के जन्म तक एक महिला की ‘किराए की कोख’.
- आमतौर पर सरोगेसी की मदद तब ली जाती है जब किसी दंपति को बच्चे को जन्म देने में कठिनाई आ रही हो.
- बार-बार गर्भपत हो रहा हो या फिर बार-बार आईवीएफ तकनीक फेल हो रही है.
- महिला किसी और दंपति के बच्चे को अपनी कोख से जन्म देने को तैयार हो जाती है उसे ‘सरोगेट मदर’ कहा जाता है.
कहां मिलती है सरोगेट मदर-
- सरोगेसी कुछ विशेष एजेंसी द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है.
- इन एजेंजिस को आर्ट क्लीनिक कहा जाता है.
- जो कि इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की गाइडलाइंस फॉलो करती है.
- सरोगेसी का एक एग्रीमेंट बनवाया जाता है.
- जिसे दो अजनबियों से हस्ताक्षर करवाएं जाते हैं जो कभी नहीं मिले.
- सरोगेट परिवार का सदस्य या दोस्त भी हो सकता है.
- सरोगेसी के लिए भारत क्यों है पॉपुलरभारत में किराए की कोख लेने का खर्चा यानी सरोगेसी का खर्चा अन्य देशों से कई गुना कम है.
- साथ ही भारत में ऐसी बहुत सी महिलाएं उपलब्ध हैं. जो सरोगेट मदर बनने को आसानी से तैयार हो जाती हैं.
- गर्भवती होने से लेकर डिलीवरी तक महिलाओं की अच्छी तरह से देखभाल तो होती ही है साथ ही उन्हें अच्छी खासी रकम भी दी जाती है.
वस्तु स्थिति-
स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग को भेजे गए दो स्वतंत्र अध्ययनों के मुताबिक हर साल भारत में 2000 विदेशी बच्चों का जन्म होता है. जिनकी सेरोगेट मां भारतीय होती हैं. देश भर में करीब 3,000 क्लीनिक विदेशी सेरोगेसी सेवा मुहैया करा रहे हैं.
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