वनों का भविष्य: उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई से उत्सर्जन नामक अध्ययन रिपोर्ट जारी की गयी-(28-AUG-2015) C.A

| Friday, August 28, 2015
वाशिंगटन आधारित सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट (सीजीडी) ने 24 अगस्त 2015 को उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई से संबंधित रिपोर्ट जारी की. इसमें वर्ष 2016 – 2050 तक कार्बन मूल्य निर्धारण पॉलिसी की जानकारी दी गयी है.

अध्ययन के अनुसार अगले 35 वर्षों में भारत के आकार का उष्णकटिबंधीय क्षेत्र वनों की कटाई के कारण प्रभावित होगा. यदि यही दशा जारी रही तो उष्णकटिबंधीय वनों की कटाई से वर्ष 2050 तक 169 बिलियन टन कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जित होगी जो 44000 कोयला चालित विद्युत् इकाइयों के बराबर है.

अध्ययन की विशेषताएं

वन क्षेत्रों के संरक्षण के आभाव में 2016-2050 तक 289 मिलियन हेक्टेयर उष्णकटिबंधीय वन कटाई से प्रभावित होंगे. यह क्षेत्र भारत जितना हो सकता है अथवा वर्ष 2000 तक सम्पूर्ण विश्व में मौजूद वन क्षेत्र जितना भी हो सकता है.

इसके अनुसार यह उष्णकटिबंधीय वन 2016-2050 तक 169 बिलियन टन कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जित करेंगे. इतनी मात्रा में कार्बन उत्सर्जन पृथ्वी का तापमान 2 डिग्री बढ़ने पर उत्सर्जित होगी.

इसमें लगाये गये अनुमान के अनुसार 2016-2050 तक कार्बन मूल्य 20/टन सीओ2 डॉलर विश्व में 41 बिलियन टन कार्बन-डाइऑक्साइड की कमी ला सकता है. 

इस अध्ययन ने यह स्पष्ट किया है कि उष्णकटिबंधीय वन क्षेत्र में कटाई पर रोक लगा कर जलवायु परिवर्तन को रोका जा सकता है.

पिछले अध्ययनों के विपरीत इसमें कहा गया है कि भविष्य में कम खर्च में वनों की कटाई रोकी जा सकती है जिससे वनाच्छादित क्षेत्र में सुधार किया जा सकता है.

इसके अनुसार 47 उष्णकटिबंधीय देशों में 89 प्रतिशत कम व्यय के उत्सर्जन द्वारा स्थिति पर काबू पाया जा सकता है. 

इसमें सुझाव दिया गया है कि यदि सभी देश ब्राज़ील के अमेज़न वनों में वर्ष 2004 के उपरांत लागू नीति की भांति कार्य करें तो कार्बन उत्सर्जन से काफी हद तक राहत प्राप्त हो सकती है.

अध्ययन

सीजीडी का अध्ययन 101 उष्णकटिबंधीय देशों में मौजूद वनों पर 8 मिलियन टिप्पणियों पर आधारित है.

अध्ययन में भविष्य में वनों की कटाई, स्थलाकृति, पहुंच, संरक्षित स्थिति, संभावित कृषि राजस्व के स्थानिक अनुमानों और वन आवरण की जानकारी निहित है

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