राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 2 मार्च 2015 को महाराष्ट्र पशु संरक्षण(संशोधन)
विधेयक 1995 को अनुमति दी. इस संशोधन से अब महाराष्ट्र में बैलों का वध करना एक
गैर कानूनी कृत्य माना जाएगा.
राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 201 के प्रावधानों के तहत इस विधेयक पर अपनी मंजूरी दी है.
राष्ट्रपति ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 201 के प्रावधानों के तहत इस विधेयक पर अपनी मंजूरी दी है.
संशोधन की विशेषताएं
अब यदि महाराष्ट्र में किसी को गोमांस बेचते हुए पाया जाता है
तो उसे पांच साल की जेल और 10000 रुपए तक का जुर्माना हो सकता है.
नए अधिनियम में अब भी भैसों के वध को गैर कानूनी श्रेणी से बहार रखा गया है,यह राज्य के कुल गोमांस बाजार का केवल 25 प्रतिशत हैं.
नए अधिनियम में अब भी भैसों के वध को गैर कानूनी श्रेणी से बहार रखा गया है,यह राज्य के कुल गोमांस बाजार का केवल 25 प्रतिशत हैं.
राज्य में गोमांस व्यापार पर प्रतिबंध
लगाने का प्रभाव
•बेरोजगारी बढ़ेगी.
•अन्य मांस की लागत बढ़ जाएगी.
राष्ट्रपति द्वारा मंजूर किए गए इस विधेयक को भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना की राज्य विधानसभा द्वारा 1995 में पारित किया गया था.1976 के महाराष्ट्र पशु संरक्षण अधिनियम की अनुसूची 5 के तहत राज्य में गोवध पहले से निषिद्ध किया गया था, परन्तु इस संशोधन के बाद से बैल और बछड़ों को भी अनुसूची 5 में शामिल किया गया है.
इससे पहले बैल वध को 1976 के महाराष्ट्र पशु संरक्षण अधिनियम की अनुसूची 6 के तहत फिट फॉर स्लॉटर(वध के लिए वैध) प्रमाण पत्र के आधार पर अनुमति दी गई थी.
राज्य विधानमंडल में राष्ट्रपति की भूमिका
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राज्य की विधानसभा द्वारा पारित किए गए विधेयक पर राज्यपाल या तो अपनी सहमति दे सकता है या विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेज सकता है.
•अन्य मांस की लागत बढ़ जाएगी.
राष्ट्रपति द्वारा मंजूर किए गए इस विधेयक को भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना की राज्य विधानसभा द्वारा 1995 में पारित किया गया था.1976 के महाराष्ट्र पशु संरक्षण अधिनियम की अनुसूची 5 के तहत राज्य में गोवध पहले से निषिद्ध किया गया था, परन्तु इस संशोधन के बाद से बैल और बछड़ों को भी अनुसूची 5 में शामिल किया गया है.
इससे पहले बैल वध को 1976 के महाराष्ट्र पशु संरक्षण अधिनियम की अनुसूची 6 के तहत फिट फॉर स्लॉटर(वध के लिए वैध) प्रमाण पत्र के आधार पर अनुमति दी गई थी.
राज्य विधानमंडल में राष्ट्रपति की भूमिका
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राज्य की विधानसभा द्वारा पारित किए गए विधेयक पर राज्यपाल या तो अपनी सहमति दे सकता है या विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए भेज सकता है.
अनुच्छेद 201: भारतीय संविधान के अनुछेद 201 के अंतर्गत यदि कोई विधेयक राज्य विधान
मंडल द्वारा पारित होने के बाद अधिनियमित होने के लिए राज्यपाल के पास भेजा जाता
है तो राज्यपाल या तो उस परअपनी मंजूरी दे सकता है या उसे राष्ट्रपति की अनुमति के
लिए आरक्षित कर सकता है.राष्ट्रपति उस विधेयक को या तो मंजूरी दे सकता है या
भविष्य में निर्णय लेने के लिए उसे अपने पास सुरक्षित रख सकता है(धन विधेयक के साथ
यह नियम लागू नहीं होता) और राष्ट्रपति राज्यपाल से उस विधेयक को वापस सदन में
पुनर्समीक्षा के लिए रखवा सकता है.सदन में वापस आए विधेयक की तिथि से 6 माह के अन्दर सदन को उस विधेयक की
पुनर्समीक्षा करनी होती है.समीक्षा के उपरान्त विधयेक को पुन: राष्ट्रपति के समक्ष
रखा जाता है.
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