सर्वोच्च न्यायालय ने आईटी एक्ट की धारा 66ए निरस्त की-(25-MAR-2015) C.A

| Wednesday, March 25, 2015

सर्वोच्च न्यायालय ने आईटी क़ानून की धारा 66ए को 24 मार्च 2015 को रद्द कर दिया. इस धारा के तहत पुलिस को इस बात का अधिकार था कि वो किसी व्यक्ति को आपत्तिजनक ऑनलाइन कंटेंट के लिए गिरफ्तार कर सकती थी तथा इस मामले में तीन वर्ष की सजा भी हो सकती थी.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस जे चेलमेश्वर और जस्टिस आर एफ नरीमन की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 66 ए से लोगों की जानकारी और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार साफ तौर पर प्रभावित होता है.न्यायालय ने प्रावधान को अस्पष्ट बताते हुए कहा, 'किसी एक व्यक्ति के लिए जो बात अपमानजनक हो सकती है, वह दूसरे के लिए नहीं भी हो सकती है.'
इस फैसले के बाद फेसबुक, ट्विटर सहित सोशल मीडिया पर की जाने वाली किसी भी कथित आपत्तिजनक टिप्पणी के लिए पुलिस आरोपी को तुरंत गिरफ्तार नहीं कर पाएगी. इस मामले में सर्वोच्च अदालत ने केंद्र के उस आश्वासन पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें कहा गया था कि कानून का दुरुपयोग नहीं होगा. कोर्ट ने हालांकि आईटी ऐक्ट के दो अन्य प्रावधानों को निरस्त करने से इनकार कर दिया, जो वेबसाइटों को ब्लॉक करने की शक्ति देता है.
विदित हो कि आईटी क़ानून की धारा 66ए को क़ानून की एक छात्रा और कुछ स्वंयसेवी संस्थाओं ने चुनौती दी थी. सुप्रीम कोर्ट में 66ए के खिलाफ दायर याचिकाओं में कहा गया कि यह कानून अभिव्यक्ति की आजादी और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है, इसलिए यह असंवैधानिक है. याचिकाओं में यह मांग भी की गई है कि अभिव्यक्ति की आजादी से जुड़े किसी भी मामले में मैजिस्ट्रेट की अनुमति के बिना कोई गिरफ्तारी नहीं होनी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने 16 मई 2013 को एक दिशा-निर्देश जारी करते हुए कहा था कि सोशल मीडिया पर कोई भी आपत्तिजनक पोस्ट करने वाले व्यक्ति को बना किसी सीनियर अधिकारी जैसे कि आईजी या डीसीपी की अनुमति के बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता.

0 comments:

Post a Comment