विश्व स्वस्थ्य संगठन ने 28 अक्टूबर 2015 को “ग्लोबल ट्यूबरक्योलोसिस रिपोर्ट 2015” शीर्षक से रिपोर्ट जारी की. यह इस रिपोर्ट का 20वां संस्करण है. इस रिपोर्ट में विश्व के 205 देशों की लगभग 99 प्रतिशत जनसंख्या को शामिल किया गया है.
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में सबसे ज्यादा टीबी के मामले भारत में पाए गए हैं. जबकि विश्वस्तर पर 1.5 मिलियन लोग की मौत टीबी से हुई जिनमे 1.1 मिलियन लोग एचआईवी पॉजिटिव थे और 0.4 मिलियन लोग एचआईवी नेगेटिव. जिनमे से 140000 बच्चे, 890000 पुरुष और 480000 महिलाएँ थीं. इस तरह से एचआईवी पॉजिटिव होने की स्थिति में जिस बिमारी से सबसे ज्यादा लोग मरते हैं उनमे टीबी का नाम शामिल हो गया है.
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में 9.6 मिलियन नए टीबी के मामले सामने आए हैं. जिनमे से 58 प्रतिशत दक्षिण-पूर्वी एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में हैं.
वर्ष 2014 में विश्व के कुल टीबी मामलों में 23 प्रतिशत मामलें भारत में, 10 प्रतिशत मामले इंडोनेशिया में और 10 प्रतिशत मामले चीन में पाए गए. इसके अतिरिक्त नाजीरिया, पकिस्तान और दक्षिण अफ्रीका में भी टीबी के अधिक मामले पाए गए.
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में कुल टीबी(एचआईवी नेगेटिव और एचआईवी पॉजिटिव) से होने वाली मौतों का 90 प्रतिशत और टीबी(एचआईवी नेगेटिव) से होने वाली मौतों का 80 प्रतिशत क्रमशः अफ्रीकी और दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में पाया गया.
रिपोर्ट में बताया गया की भारत और नाइजीरिया वैश्विक टीबी से होने वाली मौतों के एक तिहाई भाग को वहन करते हैं.
परन्तु वर्ष 1990 की तुलना में वर्ष 2015 में टीबी के प्रसार में 47 प्रतिशत की कमी आई है. वर्ष 2000 से प्रत्येक वर्ष औसतन 1.5 टीबी मामलों में गिरावट देखी गई.
परन्तु वर्ष 1990 की तुलना में वर्ष 2015 में टीबी के प्रसार में 47 प्रतिशत की कमी आई है. वर्ष 2000 से प्रत्येक वर्ष औसतन 1.5 टीबी मामलों में गिरावट देखी गई.
वर्ष 1990 की तुलना में टीबी से होने वाली मौतों की संख्या को आधा करने के लक्ष्य को अमेरिका, दक्षिण-पूर्व एशिया और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र ने प्राप्त किया है. इनमे ब्राजील, कंबोडिया, चीन, इथोपिया, भारत, म्यांमार, फिलीपींस, युगांडा और वियतनाम जैसे नौ देशों ने इस लक्ष्य को प्राप्त किया है.
रिपोर्ट के अनुसार प्रभावी निदान और उपचार ने वर्ष 2000 से 2015 के मध्य 43 मिलियन लोगों की जान बचाई है. इसके अतिरिक्त रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि उपचार का विकास, नए टीकों और दवाओं की खोज, वित्तीय कमियों को दूर कर के और अनुसंधान एवं उपचार के अंतर को कम करके इस बिमारी से होने वाली मौतों में कमी लाइ जा सकती है.
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