अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी ने वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक 2015 जारी किया-(22-NOV-2015) C.A

| Sunday, November 22, 2015
10 नवंबर 2015 को अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक 2015 जारी किया. न्यून ऊर्जा कीमतों के संदर्भ में रिपोर्ट ऊर्जा सुरक्षा मोर्चे पर किसी प्रकार की ढीलाई नही करने पर जोर देता है और ऊर्जा संक्रमण– यानि, जीवाश्म ईंधन से उत्पादित ऊर्जा से अक्षय ऊर्जा की तरफ जाने के स्पष्ट संकेत देता है.
वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक – 2015 2040 के लिए वैश्विक ऊर्जा प्रणाली के विकास के लिए अद्यतन अनुमानों के साथ– साथ जीवाश्म ईंधन, अक्षय ऊर्जा, बिजली क्षेत्र और ऊर्जा दक्षता के  लिए विस्तृत अंतर्दृष्टि प्रस्तुत करता है. साथ ही यह कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन और जीवाश्म ईंधन एवं अक्षय ऊर्जा सब्सिडी की प्रवृतियों पर विश्लेषण भी प्रस्तुत करता है.भारत जो वैश्विक ऊर्जा के केंद्र स्तर तक जाएगा, डब्ल्यूईओ– 2015 में गहराई से ध्यान देने का विषय रहा.
वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक 2015 की मुख्य बातें
• तेल की कम कीमतों की विस्तारित अवधि से उपभोक्ताओं को तो लाभ होगा लेकिन कम– लागत वाले उत्पादों की छोटी संख्या पर निर्भरता या निवेश में कमी हो जाए तो कीमतों में तेज बढ़ोतरी का जोखिम, ऊर्जा– सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा सकता है. 
• उच्च मांग और आपूर्ति में धीमी बढ़ोतरी के माध्यम से तेल की कीमतों में उतार– चढ़ाव बाजार को संतुलित करने वाले कारकों से निर्धारित होगा. 
• वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक – 2015 केंद्रीय परिदृश्य में सख्त तेल संतुलन 2020 तक 80 डॉलर प्रति बैरल की कीमत तय करेगा. 
• डब्ल्यूईओ– 2015 के केंद्रीय परिदृश्य में साल 2013 और 2040 के बीच विश्व में ऊर्जा की मांग करीब एक– तिहाई बढ़ जाएगी, इसमें शुद्ध वृद्धि पूरी तरह से विकासशील देशों की वजह से होगी. 
• साल 2040 तक चीन का शुद्ध तेल आयात संयुक्त राज्य अमेरिका के मुकाबले करीब पांच गुना अधिक हो जाएगा, जबकि भारत का आयात यूरोपीय संघ की मांग से आसानी से अधिक हो जाएगा. 
• साल 2040 में विश्व के ऊर्जा मिश्रण के प्रत्येक प्रमुख तत्व– तेल, गैस, कोयला, अक्षय और परमाणु की मांग का अग्रणी केंद्र विकासशील एशिया होगा. 
• विकासशील एशिया क्षेत्र का भारतीय खपत वृद्धि के लिहाज से चीन से आगे निकल जाएगा. 
• वैश्विक ऊर्जा के केंद्र की तरफ बढ़ते हुए भारत में ऊर्जा की मांग का स्तर वर्तमान स्तर से करीब ढाई गुना अधिक हो जाएगा. मुख्य कारण भारत के आर्थिक विकास की उच्च दर, बड़ी ( और बढ़ती) आबादी और प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपयोग का न्यून स्तर ( लेकिन बढ़ रहा) है. 
• वैश्विक आर्थिक विकास, ऊर्जा मांग और ऊर्जा– संबंधित उत्सर्जन के बीच की कड़ियां कमजोर होंगी. ऐसा ऊर्जा सेवाओं के लिए मांग हेतु कुछ बाजारों (जैसे चीन) के अपनी अर्थव्यवस्थाओं में संरचनात्मक बदलाव से गुजरने और अन्यों के संतृप्ति बिन्दु पर पहुंचने की वजह से होगा.  
• तेल की कम कीमतों के लंबे समय तक बने रहने की वजह से ऊर्जा दक्षता प्रौद्योगिकियों को अपनाने में कमी आ सकती है. कम प्रोत्साहन और कर्ज उतारने की लंबी अवधि का अर्थ है तेल की कम कीमतों के परिदृश्य में ऊर्जा बचत का 15 फीसदी कम होना. 
• तेल की कम कीमतें अकेले अक्षय ऊर्जा की तैनाती पर बड़ा प्रभाव नहीं डालेंगीं बल्कि नीति निर्माताओं को भी अनिवार्य बाजार नियमों, नीतियों और सब्सिडी प्रदान करना होगा.
 2040 में ऊर्जा का प्रमुख स्रोत
• ऊर्जा संक्रण का दौर यानि 2014 में विश्व की नई ऊर्जा उत्पादन क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा ने करीब आधा योगदान दिया है और बिजली का लगभग दूसरा सबसे बड़ा स्रोत ( कोयला के बाद) बन चुके हैं. 
• अनिवार्य ऊर्जा दक्षता विनियमन के कवरेज का वैश्विक ऊर्जा खपत के एक तिमाही से अधिक तक विस्तार किया गया है. 
• बिजली के क्षेत्र में मजबूत संकेंद्रण के साथ दुनियाभर में इनको स्थापित करने की दर बढती जा रही है.ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोत 2030 के दशक के शुरुआत तक बिजली उत्पादन के क्षेत्र में कोयला का स्थान लेते हुए सबसे बड़े स्रोत बन जाएंगे. 
• साल 2040 तक यूरोपीय संघ में नवीकरणीय ऊर्जा आधारित उत्पादन 50 फीसदी, चीन और जापान में करीब 30 फीसदी और संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत में 25 फीसदी से अधिक हो  जाएगा. 
वर्ल्ड एनर्जी आउटलुक – 2015 के अंतर्गत  केंद्रीय परिदृश्य में बदलाव का शुद्ध परिणाम के रूप में ऊर्जा– संबंधित उत्सर्जनों में विकास की दर नाटकीय रूप से धीमी होती दिखती है लेकिन उत्सर्जनों से दीर्घ कालिक परिणाम दिखते हैं जिसमें 2100 तक तापमान के 2.7°C तक बढ़ने की बात कही गई हैं . वैश्विक स्तर पर मान्य जलवायु लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अभी भी प्रमुख सुधार कार्य किए जाने की जरूरत है.

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