भारी उद्योग विभाग (डीएचआई) ने 26 अक्टूबर 2015 को पूंजीगत माल पर राष्ट्रीय नीति का मसौदा पेश किया. यह पहली बार है जब उद्योग संघों के साथ विचारविमर्श कर इस प्रकार की नीति की रुपरेखा तैयार की गई है.
पूंजीगत माल पर राष्ट्रीय नीति मेक इन इंडिया के विजन को प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर फोकस करती है और साथ ही इसमें संभावनाओं से भरे इस क्षेत्र की क्षमताओं को उजागर करने और भारत को वैश्विक विनिर्माण हब के रूप में स्थापित करने की कल्पना की गई है.
विजन
• साल 2025 तक कुल विनिर्माण गतिविधि का पूंजीगत माल के योगदान की हिस्सेदारी को वर्तमान के 12 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी करना.
मिशन
• वर्तमान स्तर से दुगने से भी अधिक के कुल उत्पादन के साथ दुनिया के शीर्ष पूंजीगत माल उत्पादक देशों में से एक बनाना.
• कुल उत्पाद का कम– से– कम 40% तक निर्यातों को बढ़ाना और इस प्रकार पूंजीगत माल के वैश्विक निर्यात मे2.5% हिस्सेदारी हासिल करना.
• भारतीय पूंजीगत मालों में वर्तमान मूल एवं मध्यवर्ती स्तर से उन्नत स्तरों तक लाने के लिए प्रौद्योगिकी में सुधार करना.
उद्देश्य
• कुल उत्पादन में बढ़ोतरी ताकि 2025 तक वर्तमान के 2.2 लाख करोड़ रुपयों से 5 लाख करोड़ रुपयों का लक्ष्य हासिल हो सके.
• 2025 तक वर्तमान 15 लाख से कम– से– कम 50 लाख तक घरेलू रोजगार में बढ़ोतरी ताकि अतिरिक्त 35 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा सके.
• भारत के पूंजीगत वस्तुओं की मांग में घरेलू उत्पादन की हिस्सेदारी को 2025 तक 56% से बढ़ाकर 80% करना और इस प्रक्रिया के दौरान घरेलू उपयोग क्षमता को 80– 90% तक सुधार लाना.
• साल 2025 तक 50 लाख लोगों को प्रशिक्षित कर कौशल उपलब्धता में सुधार लाना.
• पूंजीगत वस्तुओं के उप– क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी में सुधार के लिए भारत के अनुसंधान तीव्रता को सकल घरेलू उत्पाद के वर्तमान 0.9% से कम– से– कम 2.8% तक बढ़ाना.
प्रस्तावित नौ– सूत्री कार्य योजना
इस योजना के तहत व्यापक नीति कार्यों के सेट का प्रस्ताव दिया है जो क्षेत्र के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम होगा और नौ नए पहलों एवं नीति कार्यों के सेट की अनुशंसा की गई है जो इस प्रकार हैं–
• क्षेत्र के लागत प्रतिस्पर्धा को सुनिशिचित करने के लिए एक दीर्घकालिक, स्थिर और युक्तिसंगत कर एवं शुल्क संरचना तैयार करना.
• संशोधित पात्रता मानदंड के साथ व्यापक सार्वजनिक खरीद नीति का मसौदा तैयार करना और घरेलू मूल्य संवर्धन के लिए अनुबंध में विशेष प्रावधान करना.
• स्वदेशी श्रोतों के माध्यम से नई प्रौद्योगिकी के विकास को बढ़ावा देना.
• सभी पूंजीगत वस्तुओं के उप– क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष समर्थन उपलब्ध कराना.
• सेकेंड हैंड मशीनों के आयात को सीमित कर औरर ड्यूटी के नुकसान को कम कर लेवल प्लेइंग फिल्ड तैयार करना.
• पूंजीगत वस्तुओं के निर्माओं को प्रतिस्पर्धी दरों पर लघु और दीर्घ कालिक वित्त पोषण उपलब्धता का समर्थन.
• उप– क्षेत्र विशेष कौशल परिषदों की स्थापना कर कौशल विकास को सक्षम बनाना.
• मानक निर्माण एवं अनुपालन में सुधार हेतु समर्थन प्रणाली विकसित करने में भारत की उच्च भागीदारी को सक्षम बनाना.
• साझा सुविधाओं खासकर एसएमई के लिए विनिर्माण कलस्टरों का विकास करना.
शासन तंत्र
नीति में सुचारू कार्यान्वयन और नीति की प्रभावशीलता के लिए शासन तंत्र का प्रस्तवा है. तंत्र उच्चतम स्तर पर अंतर– मंत्रालयी और अंतर– विभागीय समितियों के रूप में होगी ताकि सभी हितधारकों के हितों पर विचार करना सुनिश्चित किया जा सके. समिति को वार्षिक आधार पर समन्वित कार्रवाई और प्रगति की निगरानी एवं नीति की प्रभावशीलता का काम सौंपा जाएगा.
नीति की आवधिक समीक्षा
पूंजीगत वस्तु क्षेत्र गतिशील स्थानीय एवं वैश्विक माहौल में काम करता है और अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए समय–समय पर इसकी नीति की समीक्षा और संशोधन करना जरूरी है. राष्ट्रीय पूंजीगत वस्तु नीति की समीक्षा प्रत्येक पांच वर्षों में एक बार की जाएगी और कार्यान्वयन एवं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय माहौल में उभरने वाली प्रवृत्तियों में प्रगति को ध्यान में रखते हुए उचित तरीके से इसमें संशोधन किया जाएगा.
पूंजीगत माल पर राष्ट्रीय नीति मेक इन इंडिया के विजन को प्राप्त करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर फोकस करती है और साथ ही इसमें संभावनाओं से भरे इस क्षेत्र की क्षमताओं को उजागर करने और भारत को वैश्विक विनिर्माण हब के रूप में स्थापित करने की कल्पना की गई है.
विजन
• साल 2025 तक कुल विनिर्माण गतिविधि का पूंजीगत माल के योगदान की हिस्सेदारी को वर्तमान के 12 फीसदी से बढ़ाकर 20 फीसदी करना.
मिशन
• वर्तमान स्तर से दुगने से भी अधिक के कुल उत्पादन के साथ दुनिया के शीर्ष पूंजीगत माल उत्पादक देशों में से एक बनाना.
• कुल उत्पाद का कम– से– कम 40% तक निर्यातों को बढ़ाना और इस प्रकार पूंजीगत माल के वैश्विक निर्यात मे2.5% हिस्सेदारी हासिल करना.
• भारतीय पूंजीगत मालों में वर्तमान मूल एवं मध्यवर्ती स्तर से उन्नत स्तरों तक लाने के लिए प्रौद्योगिकी में सुधार करना.
उद्देश्य
• कुल उत्पादन में बढ़ोतरी ताकि 2025 तक वर्तमान के 2.2 लाख करोड़ रुपयों से 5 लाख करोड़ रुपयों का लक्ष्य हासिल हो सके.
• 2025 तक वर्तमान 15 लाख से कम– से– कम 50 लाख तक घरेलू रोजगार में बढ़ोतरी ताकि अतिरिक्त 35 लाख लोगों को रोजगार मुहैया कराया जा सके.
• भारत के पूंजीगत वस्तुओं की मांग में घरेलू उत्पादन की हिस्सेदारी को 2025 तक 56% से बढ़ाकर 80% करना और इस प्रक्रिया के दौरान घरेलू उपयोग क्षमता को 80– 90% तक सुधार लाना.
• साल 2025 तक 50 लाख लोगों को प्रशिक्षित कर कौशल उपलब्धता में सुधार लाना.
• पूंजीगत वस्तुओं के उप– क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी में सुधार के लिए भारत के अनुसंधान तीव्रता को सकल घरेलू उत्पाद के वर्तमान 0.9% से कम– से– कम 2.8% तक बढ़ाना.
प्रस्तावित नौ– सूत्री कार्य योजना
इस योजना के तहत व्यापक नीति कार्यों के सेट का प्रस्ताव दिया है जो क्षेत्र के लक्ष्यों को प्राप्त करने में सक्षम होगा और नौ नए पहलों एवं नीति कार्यों के सेट की अनुशंसा की गई है जो इस प्रकार हैं–
• क्षेत्र के लागत प्रतिस्पर्धा को सुनिशिचित करने के लिए एक दीर्घकालिक, स्थिर और युक्तिसंगत कर एवं शुल्क संरचना तैयार करना.
• संशोधित पात्रता मानदंड के साथ व्यापक सार्वजनिक खरीद नीति का मसौदा तैयार करना और घरेलू मूल्य संवर्धन के लिए अनुबंध में विशेष प्रावधान करना.
• स्वदेशी श्रोतों के माध्यम से नई प्रौद्योगिकी के विकास को बढ़ावा देना.
• सभी पूंजीगत वस्तुओं के उप– क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष समर्थन उपलब्ध कराना.
• सेकेंड हैंड मशीनों के आयात को सीमित कर औरर ड्यूटी के नुकसान को कम कर लेवल प्लेइंग फिल्ड तैयार करना.
• पूंजीगत वस्तुओं के निर्माओं को प्रतिस्पर्धी दरों पर लघु और दीर्घ कालिक वित्त पोषण उपलब्धता का समर्थन.
• उप– क्षेत्र विशेष कौशल परिषदों की स्थापना कर कौशल विकास को सक्षम बनाना.
• मानक निर्माण एवं अनुपालन में सुधार हेतु समर्थन प्रणाली विकसित करने में भारत की उच्च भागीदारी को सक्षम बनाना.
• साझा सुविधाओं खासकर एसएमई के लिए विनिर्माण कलस्टरों का विकास करना.
शासन तंत्र
नीति में सुचारू कार्यान्वयन और नीति की प्रभावशीलता के लिए शासन तंत्र का प्रस्तवा है. तंत्र उच्चतम स्तर पर अंतर– मंत्रालयी और अंतर– विभागीय समितियों के रूप में होगी ताकि सभी हितधारकों के हितों पर विचार करना सुनिश्चित किया जा सके. समिति को वार्षिक आधार पर समन्वित कार्रवाई और प्रगति की निगरानी एवं नीति की प्रभावशीलता का काम सौंपा जाएगा.
नीति की आवधिक समीक्षा
पूंजीगत वस्तु क्षेत्र गतिशील स्थानीय एवं वैश्विक माहौल में काम करता है और अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए समय–समय पर इसकी नीति की समीक्षा और संशोधन करना जरूरी है. राष्ट्रीय पूंजीगत वस्तु नीति की समीक्षा प्रत्येक पांच वर्षों में एक बार की जाएगी और कार्यान्वयन एवं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय माहौल में उभरने वाली प्रवृत्तियों में प्रगति को ध्यान में रखते हुए उचित तरीके से इसमें संशोधन किया जाएगा.
0 comments:
Post a Comment