एनएसजी एवं भारत: वर्तमान स्थिति-(25-JUNE-2016) C.A

| Saturday, June 25, 2016
हाल ही में न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) की वियना (आस्ट्रिया) में दो दिन चली बैठक बेनतीजा खत्म हो गई. इस बैठक में एनएसजी में भारत को शामिल करने के बारे में कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया जा सका. इसके साथ ही वर्तमान में भारत द्वारा न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में शामिल होने का कुटनीतिक प्रयास काफी तेज हो गया है. यदि यह सफल होता है तब भारत निसंदेह रूप से परमाणु उर्जा के क्षेत्र में भारत काफी मजबूत स्थिति में आ जायेगा. जहाँ उसे परमाणु तकनीक एवं परमाणु आपूर्ति दोनों क्षेत्रों में लाभ होगा! परन्तु चीन के रवैये से यह सपना अभी पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा.
वर्तमान ख़बरों के अनुसार, अमेरिका के ठोस समर्थन के बाद भारत की सदस्यता का विरोध कर रहे दक्षिण अफ्रीका, न्यूजीलैंड और तुर्की जैसे कुछ देशों के रुख में नरमी आयी है और वे इस मुद्दे पर समझौते की ओर बढ़ने के लिए तैयार हैं, लेकिन चीन का रवैया सही नहीं है. उसका कहना है कि परमाणु अप्रसार संधि से सहमति इस समूह में शामिल होने की आधारभूत शर्त है. जिसकी शर्त को भारत पूरा नहीं करता है.
विदित हो कि न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) परमाणु अपूर्तिकर्ता देशों का समूह है, जो परमाणु हथियार बनाने में सहायक हो सकनेवाली वस्तुओं, यंत्रों और तकनीक के निर्यात को नियंत्रित कर परमाणु प्रसार को रोकने की कोशिश करते हैं.
भारत द्वारा वर्ष 1974 में किये गये पहले परमाणु परीक्षण की प्रतिक्रिया के रूप में इस समूह के गठन का विचार पैदा हुआ था और इसकी पहली बैठक नवंबर 1975 में हुई थी. इस परीक्षण से यह संकेत गया था कि असैनिक परमाणु तकनीक का उपयोग हथियार बनाने में भी किया जा सकता है. ऐसे में परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कर चुके देशों को परमाण्विक वस्तुओं, यंत्रों और तकनीक के निर्यात को सीमित करने की जरूरत महसूस हुई. वर्ष 1975 से वर्ष 1978 के बीच विभिन्न वार्ताओं के सिलसिले के बाद निर्यात को लेकर दिशा-निर्देश जारी किये गये, जिन्हें इंटरनेशनल एटॉमिक एनर्जी एजेंसी द्वारा प्रकाशित किया गया. लंदन (ब्रिटेन) में हुई इन बैठकों के कारण इस समूह को ‘लंदन क्लब’, ‘लंदन समूह’ और ‘लंदन सप्लायर्स ग्रुप’ के नाम से भी जाना जाता है. इस समूह की अगली बैठक ‘हेग’ में वर्ष 1991 में हुई और नियमों में कुछ संशोधन किये गये तथा इसमें नियमित रूप से बैठक करने का निर्णय भी लिया गया. प्रारंभ में एनसीजी के सात संस्थापक सदस्य देश थे- कनाडा, जर्मनी, फ्रांस, जापान, सोवियत संघ, ब्रिटेन और अमेरिका. वर्ष 1976-77 में यह संख्या 15 हो गयी. वर्ष 1990 तक 12 अन्य देशों ने समूह की सदस्यता ली. चीन को वर्ष 2004 में इसका सदस्य बनाया गया. वर्तमान में इसमें 48 सदस्य देश शामिल हैं और वर्ष 2015-16 के लिए समूह की अध्यक्षता अर्जेंटीना कर रहा है. मौजूदा 48 सदस्यों में से पांच देश परमाणु हथियार संपन्न हैं, जबकि अन्य 43 देश परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कर चुके हैं. इस संधि को भेदभावपूर्ण मानने के कारण भारत ने अब तक इस पर हस्ताक्षर नहीं किया है. वर्ष 2008 में हुए भारत-अमेरिका परमाणु करार के बाद एनएसजी में भारत को शामिल होने की प्रक्रिया शुरू हुई.
यदि भारत के कुटनीतिक प्रयासों से इस समूह की सदस्यता मिल जाती है तो भारत को इसके कई लाभ हो सकते हैं जैसे कि दवा से लेकर परमाणु ऊर्जा सयंत्र के लिए जरूरी तकनीकों तक भारत की पहुंच सुगम हो जायेगी, क्योंकि एनएसजी आखिरकार परमाणु कारोबारियों का ही समूह है. भारत के पास देशी तकनीक तो है, पर अत्याधुनिक तकनीकों के लिए उसे समूह में शामिल होना पड़ेगा. इसके साथ ही साथ भारत ने जैविक ईंधन पर अपनी निर्भरता कम करते हुए अक्षय और स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से अपनी ऊर्जा जरूरतों का 40 प्रतिशत पूरा करने का संकल्प लिया हुआ है. ऐसे में उस पर अपनी परमाणु ऊर्जा उत्पादन को बढ़ाने का दबाव है, और यह तभी संभव हो सकेगा, जब उसे एनएसजी की सदस्यता मिले.
उपरोक्त परिस्थिति को देखते हुए हम कह सकते हैं कि यदि भारत अपने कुटनीतिक प्रयासों में सफल होता है एवं यदि उसे एनएसजी की सदस्यता मिल जाती है तो यह भारत ही नहीं पुरे दक्षिण एशिया के लिए एक नए सामरिक समीकरण को जन्म देगा जहाँ भारत की स्थिति पहले से काफी मजबूत हो जाएगी. कहीं न कहीं इसी स्थिति को देखते हुए चीन भारत के इस प्रयास में अडंगा डाल रहा है क्योकिं भारत की मजबूत स्थिति दक्षिण एशिया में चीन की दादागिरी को कमजोर करने की शुरुआत होगी जिसे चीन कभी सफल होने देना नहीं चाहेगा.

0 comments:

Post a Comment