रक्तदान: एक संक्षिप्त समीक्षा-(18-JUNE-2016) C.A

| Saturday, June 18, 2016
रक्तदान की महत्ता को कोई इंकार नहीं कर सकता. जहाँ यह ज़िंदगी बचाने में मददगार साबित होता है वहीं दूसरी तरफ इसका कोई विकल्प आज तक विज्ञान के पास नहीं है. इसके लिये आज भी चिकित्सा जगत लोगों द्वारा किये गए रक्त दान पर निर्भर है. 

विगत 14 जून को पूरी दुनिया में रक्तदान दिवस मनाया गया. जिसका उद्देश्य आमजन को रक्तदान के प्रति प्रेरित करना है. विश्व विख्यात ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी और भौतिकीविद एवं रक्त समूह के खोजकर्ता ‘कार्ल लेण्डस्टाइनर’ की याद में उनके जन्मदिन 14 जून के अवसर पर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा हर वर्ष 1997 से हर वर्ष 14 जून को 'रक्तदान दिवस' मनाया जाता है.
वर्ष 1997 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 100 प्रतिशत स्वैच्छिक रक्तदान नीति की नींव डाली थी. इसके तहत वर्ष 1997 में संगठन ने यह लक्ष्य रखा था कि विश्व के प्रमुख 124 देश अपने यहाँ स्वैच्छिक रक्तदान को ही बढ़ावा दें. इसका उद्देश्य यह था कि रक्त की जरूरत पड़ने पर उसके लिए किसी को पैसे देने की जरूरत नहीं पड़े. अब लगभग विश्व के 49 देशों ने ही इस पर अमल किया है. तंजानिया जैसे देश में 80 प्रतिशत रक्तदाता पैसे नहीं लेते. ब्राजील में तो यह क़ानून है कि आप रक्तदान के पश्चात किसी भी प्रकार की सहायता नहीं ले सकते. ऑस्ट्रेलिया के साथ साथ कुछ अन्य देश भी हैं जहाँ पर रक्तदाता पैसे बिलकुल भी नहीं लेते. जिसे इस सन्दर्भ में अच्छा संकेत माना जाना चाहिए.

भारतीय परिपेक्ष में इसकी स्थिति थोड़ी अलग है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के तहत भारत में सालाना एक करोड़ यूनिट रक्त की जरूरत होती है लेकिन कुल उपलब्धता केवल 75 लाख यूनिट ही है. यानी क़रीब 25 लाख यूनिट रक्त के अभाव में हर साल सैंकड़ों मरीज़ दम तोड़ देते हैं. राजधानी दिल्ली के आंकड़ों के मुताबिक यहां हर वर्ष 350 लाख रक्त यूनिट की आवश्यकता रहती है, लेकिन स्वैच्छिक रक्तदाताओं से इसका महज 30 प्रतिशत ही जुट पाता है.
भारत की आबादी भले ही सवा अरब पहुंच गयी हो, रक्तदाताओं का आंकड़ा कुल आबादी का एक प्रतिशत भी नहीं पहुंच पाया है. विशेषज्ञों के अनुसार भारत में कुल रक्तदान का केवल 59 फीसदी रक्तदान स्वेच्छिक होता है. जबकि राजधानी दिल्ली में तो स्वैच्छिक रक्तदान केवल 32 फीसदी है. दुनिया के कई सारे देश हैं जो इस मामले में भारत को काफ़ी पीछा छोड़ देते हैं. नेपाल में कुल रक्त की जरूरत का 90 फीसदी स्वैच्छिक रक्तदान से पूरा होता है तो श्रीलंका में 60 फीसदी, थाईलेण्ड में 95 फीसदी, इण्डोनेशिया में 77 फीसदी और अपनी निरंकुश हुकूमत के लिए चर्चित बर्मा में 60 फीसदी हिस्सा रक्तदान से पूरा होता है.

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