विमुद्रीकरण का सकारात्मक प्रभाव-(28-NOV-2016) C.A

| Monday, November 28, 2016
Impacts of note banविमुद्रीकरण को भारत में हुए अब तक के हुए सभी वित्तीय सुधारों में श्रेष्ठ माना जा रहा है, जिसने बहुत कम समय में ही अपना सकारात्मक प्रभाव दिखाना शुरु कर दिया है। 8 नवम्बर को विमुद्रीकरण के घोषणा के बाद भारत में 500 और 1000 रुपये के नोट वैध नहीं रह गए। बेशक, इस सुधारात्मक कार्रवाई ने आम जनता के लिए कुछ परेशानी पैदा कर दी है, पर ऐसा लग रहा है कि परेशानी का यह दौर जल्द ही बीत जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा निजी तौर पर किये गए एक सर्वे से ये भी पता चला है की 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग इस फैसले से बहुत खुश हैं और होने वाली परेशानी को झेलने के लिए तैयार भी। और यही तो लोकतंत्र की सुन्दरता है, जहां नागरिक राष्ट्र निर्माण और नीति निर्मण में हिस्सा स्वतः रूप से लेते है।
यहां हम देखेंगे कि विमुद्रीकरण ने देश और समाज पर किस प्रकार प्रभाव डाला हैः
काला धन 
किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए काले धन को कैंसर माना जाता है। यह समानांतर अर्थव्यवस्था होती है जो किसी भी देश की नींव को कमजोर कर देती है। अनुमान है कि भारत में 3 लाख करोड़ रुपयों का काला धन है। यदि हम देखें कि कुल परिचालन में सिर्फ 17 लाख करोड़ रुपये हैं तो काले धन की यह मात्रा काफी बड़ी है। विमुद्रीकरण के एक अकेले मास्टर स्ट्रोक से पूरा काला धन या तो खातों में आ जाएगा या बर्बाद हो जाएगा।
जाली नोट 
आईएसआई (भारतीय सांख्यिकी संस्थान) के अनुसार भारत में हमेशा 400 करोड़ रु. के जाली नोटों का परिचालन होता रहता है। इस बात का भी अनुमान लगाया गया है कि हर साल भारत में करीब 70 करोड़ रु. के जाली नोट भेजे जाते हैं। 
बैंक जमा
यह सभी जानते हैं कि भारत में परिचालन में चलने वाले करीब 86 फीसदी नोट 500 और 1000 रु. के करेंसी नोट हैं और इन नोटों के विमुद्रीकरण ने लोगों को उनका पैसा (500 और 1000 रु. के नोट )बैंक में जमा कराने पर मजबूर कर दिया। आरबीआई ने घोषणा कर बताया कि 18 नवंबर तक बैंकों में 5.12 ट्रिलियन (एक करोड़ खरब) रु. आए। यह पैसा भारतीय जीडीपी की गति को 0.5 से 1.5 फीसदी तक बढ़ा सकता है। भारत के सार्वजनिक क्षेत्र का सबसे बड़ा बैंक भारतीय स्टेट बैंक ने कहा कि उसे 1.27 ट्रिलियन रु. मूल्य का नकद जमा प्राप्त हुआ है। 
ऋण दर
नकद जमा के इस बड़े आधार पर बैंक ऋण की दरों को कम करने में सक्षम होंगे क्योंकि उच्च जमा उधार की उच्च लागत का स्थान लेगी और कोष के कुल लागत को कम करेगी। इस बात की उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले छह महीनों में बैंक ~125 बीपीएस तक जमा दरों को कम कर सकती है। एमसीएलआर (Marginal Cost of Funds based Lending Rate) के लिए नए दिशानिर्देश तत्काल कम हो जाएगा। यह ऋण दरों में कमी का रास्ता बनाएगा  जिससे मध्यम अवधि में आर्थिक गतिविधियों में तेजी आएगी। 
रीयल एस्टेट की सफाई 
अक्सर कहा जाता है कि रीयल एस्टेट उद्योग काले धन पर ही चलता है। इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर काले धन का इस्तेमाल किया जाता है। एक रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली– एनसीआर में रीयल एस्टेट का कम–से–कम 40 फीसदी कारोबार काले धन में ही होता है। विमुद्रीकरण की वजह से रीयल एस्टेट क्षेत्र में काले धन के इस्तेमाल पर लगाम लगेगी। 
हवाला लेनदेन 
विमुद्रीकरण ने हवाला रैकेट को बुरी तरह से प्रभावित किया है। हवाला पैसे के वास्तिवक लेन– देन के बिना पैसे के होने वाले हस्तांतरण का तरीका है। खुफिया रिपोर्टों के अनुसार हवाला का रास्ता मुख्य रूप से काले धन को वैध बनाने (मनी लॉन्ड्रिंग) और आतंकवादियों को पैसा देने के लिए इस्तेमाल में लाया जाता है। काले धन का अचानक से बाजार से हट जाने से हवाला का काम ठप्प हो गया है। 
वित्तीय समावेशन
बैंकों में नकद की आमद बैंकों को सब्सिडी वाले ऋण और जन धन खाता धारकों को अन्य सुविधाएं देने में सक्षम बनाएगा । बैंकिंग सिस्टम में कुल जमा में जन धन खातों की हिस्सेदारी 1% से भी कम है। उच्च मान वाले नोटों के विमुद्रीकरण से जन धन खातों में नकद जमा में बढ़ोतरी हो सकती है और इस कदम से जन धन खाताधारक बैंकिंग प्रणाली के आदी भी हो जाएंगे। 
सरकारी वित्त  
बेहिसाब पैसा औपचारिक चैनल में रास्ता बनाएगा। इससे आयकर संग्रह बढेगा। आयकर में होने वाली बढ़ोतरी सरकार को वित्त वर्ष 2017 में राजकोषीय घाटे को कम करने में मदद करेगी। यह नवीनतम कदम अर्थव्यवस्था को असंगठित से संगठित क्षेत्र में बदल देगा और बेहिसाब पैसे का वैधीकरण जीएसटी योजना को लागू करने की सुविधा प्रदान करेगा। 
बॉन्ड बाजार 
करेंसी नोटों पर प्रतिबंध बाजार में सरकारी बॉन्ड की मांग को बढ़ाएगा। जैसा कि हम जानते हैं, इससे बैंकों में नकद जमा में सुधार होगा जिससे आखिरकार एसएलआर (वैधानिक तरलता अनुपात) मांग में बढ़ोतरी होगी। 
कश्मीर अशांति 
यदि विमुद्रीकरण ने कहीं अपना प्रभाव सबसे पहले दिखाया है तो वह है कश्मीर घाटी। कश्मीर में चार महीने से चल रही अशांति पैसे की आपूर्ति में कमी के कारण कम हो गई है। एक खुफिया रिपोर्ट की मानें तो कश्मीर में अशांति फैलाने के लिए अलगाववादियों को हर साल पाकिस्तान से 1,000 करोड़ रुपये मिलते हैं। यह पैसा हवाला के जरिए भेजा जाता है। विमुद्रीकरण ने हवाला कारोबार को पूरी तरह से ठप्प कर दिया है। नतीजतन, अलगाववादियों के पास कोई चारा नहीं बचा। देश के भीतर और बाहर दोनों ही जगहों पर काम करने वाले भारतीय करेंसी के सिंडेकट को विमुद्रीकरण की वजह से जबरदस्त झटका लगा है। 
विमुद्रीकरण ने कश्मीर घाटी में पथराव करने वालों के बीच भी शांति ला दी है। चूंकि विमुद्रीकरण की वजह से अलगाववादियों के वित्त पोषण को गंभीर झटका लगा है, वे राज्य के युवाओं को सेना या राज्य सरकार के खिलाफ उकसाने में असमर्थ हैं। 
नक्सली और उत्तर– पूर्व के उग्रवादी 
ये ऐसे समूह है जिनका जीवन है काला धन। विमुद्रीकरण से सबसे ज्यादा पीड़ित यही लोग हैं। इसलिए ये लोग सरकार के इस कदम को "वित्तीय आपातकाल" बता रहे हैं। अनुमान के अनुसार आतंकवाद के वित्त पोषण, एनजीओ, जालसाजी, जबरन वसूली और स्थानीय करों के जरिए ये सालाना 500 करोड़ रुपयों से अधिक की कमाई करते हैं। इतनी बड़ी धनराशि का इस्तेमाल भर्ती, हथियार खरीदने, खाना, दवा और रहने की व्यवस्था के लिए किया जाता है। 
विमुद्रीकरण की वजह से इनका सारा पैसा रद्दी कागज बन कर रह गया है। हालांकि, यह भी देखने में आ रहा है कि नक्सली अपने खातों में पैसा जमा कराने के लिए गांव वालों का इस्तेमाल कर रहे हैं। अधिकारियों को इस मामले को गंभीरता से लेना चाहिए और ऐसे पैसे को जमा करने से रोकना चाहिए।
इस बात का भी उल्लेख किया जाना चाहिए कि हाल में मिले आंकड़ों के अनुसार विमुद्रीकरण के बाद चोरी, छीनाछपटी, डकैती आदि जैसे अपराध दिल्ली, पुणे और मुंबई जैसी जगहों पर बहुत कम हो गए हैं।

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