महाराष्ट्र फ्लाई एश उपयोगिता नीति अपनाने वाला पहला भारतीय राज्य बना-(18-NOV-2016) C.A

| Friday, November 18, 2016
महाराष्ट्र 15 नवंबर 2016 को भारत का पहला ऐसा राज्य बन गया जिसने फ्लाई एश उपयोगिता नीति अपना ली. यह नीति कचरे से पैसा बनाकर और पर्यावरण संरक्षण द्वारा समृद्धि का मार्ग प्रशस्त करेगी. 
नीति को लागू करने का यह फैसला राज्य के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस की अध्यक्षा में हुआ साप्ताहिक कैबिनेट बैठक में किया गया.
फ्लाई एश उपयोगिता नीति की मुख्य बातें:
•    नीति के अनुसार, ताप विद्युत संयंत्रों और बायोगैस संयंत्रों से पैदा होने वाले शत– प्रतिशत फ्लाई ऐश का उपयोग निर्माण गतिविधियों में किया जाएगा. 
•    इनका प्रयोग ईंट, ब्लॉक, टाइलें, दीवार के पैनल, सीमेंट और अन्य निर्माण संबंधी सामग्रियों को बनाने में किया जाएगा. 
•    नीति इन फ्लाई एश का उपयोग बिजली संयंत्र के 300 किमी दायरे के भीतर करने की भी अनुमति देती है. इससे पहले सिर्फ 100 किमी दायरे में इसके इस्तेमाल की अनुमति थी. 
•    यह नीति विद्युत संयंत्र वाले इलाकों में रोजगार के नए अवसर पैदा करेगी.
•    यह सभी प्रकार की परियोजनाओं के लिए आवास हेतु कम लागत पर निर्माण हेतु कच्चा माल भी उपलब्ध कराएगी.
फ्लाई एश क्या है?
•    फ्लाई एश कोयला दहन उत्पादों में से एक है. 
•    यह ईंधन गैसों के साथ बॉयलर से बाहर निकलने वाला बारीक कणों से मिल कर बनता है. 
•    आधुनिक कोयला बिजली संयंत्रों में आमतौर पर इलेक्ट्रोस्टैटिक प्रेसीपिटेटर्स या अन्य कण निस्पंदन उपकरण द्वारा इंध गैसों के चिमनियों में पहुंचने से पहले ही फ्लाई एश को इक्टठा कर लिया जाता है. 
•    फ्लाई एश में पर्याप्त मात्रा में सिलिकॉन डाईऑक्साइड, एल्यूमीनियम ऑक्साइड और कैल्शियम ऑक्साइड होता है.

फ्लाई एश का पुनः उपयोग:
फ्लाई एश का फिर से प्रयोग पोर्टलैंड सीमेंट और कंक्रीट उत्पादन में रेत के विकल्प के रूप में किया जा सकता है. इसका प्रयोग सड़क बनाने में भी किया जा सकता है. इसके कृषि प्रयोगों में मिट्टी संशोधन, उर्वरक, पशु चारा और स्टॉक फीड यार्ड्स में मिट्टी का स्थिरीकरण करना शामिल है. सीमेंट धातुमल उत्पादन के लिए इसे मिट्टी के विकल्प के तौर पर भी इस्तेमाल किया जा सकता है.  
फ्लाई एश का पर्यावरण पर प्रभाव 
जमा कर रखे गए फ्लाई एश में मौजूद भारी धातु रिसाव के जरिए भूजल तक पहुंच सकते हैं जो आस–पास की आबादी के स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकता है. वायु प्रदूषण के अलावा यह मिट्टी और जल प्रणालियों को भी प्रदूषित कर सकता है

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