विलुप्तप्राय पैंगोलिन की सुरक्षा हेतु पांचवां विश्व पैंगोलिन दिवस मनाया गया-(25-FEB-2016) C.A

| Thursday, February 25, 2016
पैंगोलिन एक चींटीखोर और फोलीडोटा प्रकार का कीटभक्षी स्तनपायी हाल ही में सुर्खियों में रहा. इसकी सुरक्षा के उद्देश्य से 20 फरवरी 2016 को पांचवां विश्व पैंगोलिन दिवस मनाया गया.
इस अनूठे स्तनपायी और उसकी दुर्दशा के बारे में जागरुकता पैदा करने की उम्मीद के साथ हर वर्ष फरवरी माह के तीसरे शनिवार को यह दिन मनाया जाता है.
विश्व पैंगोलिन दिवस की पूर्व संध्या पर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ– इंडिया का एक प्रभाग ट्रैफिक (टीआरएएफएफआईसी) इंडिया ने इन प्राणियों की रक्षा करने की जरूरत पर जोर दिया क्योंकि अवैध शिकार और निवास स्थान के नुकसान के कारण यह विलुप्त होने की कगार पर है.
इनकी आठ प्रजातियां हैं और ये सिर्फ अफ्रीका और एशिया में पाए जाते हैं. इनमें से दो भारत में पाए जाते हैं, इनके नाम है इंडियन पैंगोलिन (मानिस क्रासिकाउडाटा) और चाइनीज पैंगोलिन (मानिस पेंटाडाक्टायल).
भारत में यह वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की पहली अनुसूची के तहत संरक्षित पशु है.संरक्षित पशुओं से अभिप्राय वैसे पशुओं से है जिनके व्यापार की अनुमति नहीं होती है. 
एशियाई पैंगोलिन
• चाइनीज पैंगोलिन (मानिस पेंटाडाक्टायल)– विलुप्तप्राय
• सुंडा पैंगोलिन (मानिस जावानिका)– विलुप्तप्राय 
• इंडियन पैंगोलिन (मानिस क्रास्सिकाउडाटा)– लुप्तप्राय 
• फिलीपीन पैंगोलिन (मानिस कुलियोनेनसिस) – लुप्तप्राय 
अफ्रीकी पैंगोलिन
• केप या टेम्मिनिक्स ग्राउंड पैंगोलिन (स्मुत्सिया टेम्मिनक्कि) – अतिसंवेदनशील 
• ह्वाईट– बेल्लीड या ट्री पैंगोलिन (फाटागिनस ट्रीकसपिस)– अतिसंवेदनशील
• जाइंट ग्राउंड पैंगोलिन (स्मुत्सिया गिगांटिया)– अतिसंवेदनशील
• ब्लैक बेल्लीड या लॉन्ग ट्रेल्ड पैंगोलिन (फाटैजिनस टेट्राडाक्टायला)– अतिसंवेदनशील 
पैंगोलिन की विशेषताएं
• पैंगोलिन शब्द मलय शब्द पुंग्गोलिन से बना है जिसका अर्थ होता है उपर चढ़ने वाला कोई जीव. 
• ये प्रजातियां चींटी खाने वाली प्रजातियों से सम्बंधित है और स्तनपायी होती हैं. इनकी उपरी परत सख्त प्लेट जैसी  होती है और आमतौर पर ये चींटियां और दीमक खाते हैं. 
• इनके  दांत नहीं होते  और शिकार करने एवं खाने के लिए ये अपनी लंबी, चिपचिपी जीभ का इस्तेमाल करते  हैं . 
• इनकी खाल केराटीन से बनी होती है– यह वही प्रोटीन है जिससे मनुष्यों के बाल और उंगलियों के नाखून बनते हैं. 
• पैंगोलिन के भीतरी हिस्सों में परत नहीं होती और वह थोड़ी– बहुत फर के साथ ढंकी होती है. 
• अफ्रीकी पैंगोलिन के विपरीत, एशियन पैंगोलिन में मोटे बाल होते हैं जो उनके चमड़ों के बीच उगे होते हैं. 
प्रजातियों पर खतरे 
• रिपोर्ट के अनुसार भारत में पैंगोलिन के मांस की मांग बढ़ रही है और इसकी वजह से इस प्रजाति के विलुप्त होने का खतरा बढ़ सकता है. यह एशिया में तस्करी में ले जाए जाने के दौरान अक्सर पकड़े जाने वाली प्रजातियों में से एक है. 
• 2009 से 2013 की जब्ती रिपोर्ट से पता चलता है कि सिर्फ भारत में करीब 3350 पैंगोलिन्स का अवैध शिकार किया गया. लेकिन यह सिर्फ एक अनुमान हो सकता है क्योंकि इसके अवैध व्यापार का बहुत बड़े हिस्से का पता नहीं चल पाता है. 
• भारत में ये प्रजातियां स्थानीय व्यापार के लिए मारी जाती हैं और फिर चीन एवं दक्षिण– पूर्व एशिया के अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इसे बेच दिया जाता है जहां इनके चमड़ी, त्वचा और मांस की बहुत मांग है. 
• इसके अलावा पैंगोलिन का शिकार पूर्वी भारत के राज्यों में 'शिकार उत्सव' के दौरान धार्मिक परंपरा के तौर पर भी किया जाता है. 
इनको क्यों मारा जाता है?
• कई समुदायों के बीच इसके मांस को स्वादिष्ट माना जाता है और इसके कथित चिकित्सीय गुणों के कारण भी इसे खाया जाता है. 
• पैंगोलिन के चमड़ी का परंपरागत प्राच्य दवाओं जैसे कामोत्तेजक (एफ्रडिजीऐक) दवाओं और अस्थमा एवं सोरेसिस से लेकर कैंसर जैसी बीमारियों के इलाज में बड़े पैमाने पर किया जाता है. हालांकि इसकी चिकित्सीय प्रभावकारिता अभी तक अप्रमाणित है. 
• उनके चमड़ी से अंगूठी या आभूषण भी बनाए जाते हैं. 
• इसकी चमड़ी का बूट और जूते जैसे चमड़े के सामान बनाने में भी इस्तेमाल किया जाता है.

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