लाल सागर में हाइड्रॉयड पॉलिप्स की हरी प्रतिदीप्ति उत्सर्जन करने वाली नई प्रजातियों की खोज-(18-FEB-2016) C.A

| Thursday, February 18, 2016
वैज्ञानिकों (जीवविज्ञानी) की अंतरराष्ट्रीय टीम ने लाल सागर में हाइड्रॉयड पॉलिप्स की हरी प्रतिदीप्ति उत्सर्जन करने वाली नई प्रजातियों की खोज की है. ये पॉलिप्स रात में गैसट्रोपोड नास्सारियस मारगरीटिफर के साथ मिलकर प्रकाश उत्सर्जित करते पाए गए थे.
ये हाइड्रॉयड पॉलिप्स जिन्हें हाइड्रोजोआ भी कहा जाता है (संभवतः जीनस साइटेइस की नई प्रजातियां है, जिनकी लंबाई 1.5 मिमी तक पहुंच जाती है), फारासान द्वीपसमूह (सउदी अरब, लाल सागर के दक्षिण में) की प्रवाल भित्तियों (कोरल रीफ्स) की जैव विविधता की जांच के दौरान पाए गए थे.
टीम में लोमोनोसोव मास्को स्टेट यूनिवर्सिटी और रशियन एकेडमी ऑफ साइंसेस के शोधकर्ता शामिल थे. अध्ययन के नतीजे प्लोस वन में प्रकाशित हुए हैं. 
अध्ययन की मुख्य विशेषताएं
• पहली बार वैज्ञानिकों ने दिखाया कि शरीर के किसी खास हिस्से में चमक का स्थानीकरण समान रचना वाले जीवों की अलग– अलग प्रजातियों में भेद करने में मदद कर सकते हैं. 
• खोजी गईं नई प्रजातियां लघु कॉलोनियां बनाती है जिसे गैसट्रोपोड नास्सारियस मारगरीटिफर ( 20–35 मिमी, लंबाई में) के छोटी खालों और "प्रतिदिप्त लालटेन" के हारों से सजाती हैं जो हरे रंग की चमक बिखेरता है. 
• 518 nm के स्पेक्ट्रल पीक के साथ सघन हरी प्रतिदीप्ति साइटेइस पॉलिपस के हाइपोस्टोम में पाया गया, पिछली रिपोर्टों से विपरीत यह पॉलिप्स के निचले हिस्सों या हायड्रॉयड कॉलोनियों के अन्य स्थानों पर प्रतिदीप्ति की बात कहता है. 
•"प्रतिदीप्ति" मुश्किल से पहचानी जा सकने वाली प्रजातियों की तुरंत पहचान और पारिस्थितिकी लक्षणों के अध्ययन एवं हॉइड्रॉयड एवं उसके मेजबान– मोलस्का के वितरण में उपयोगी हो सकती है. 
हरी प्रतिदीप्ति क्या है ?
प्रतिदीप्ति प्रकाश रौशनी के तहत कुछ प्रोटीन या पिग्मेंट की एक चमक है जो रोशनी के आखिरमें लुप्त हो जाती है.
एंथ्रोजोआ कोरल और हाइड्रॉयड जेलीफिश में हरी प्रतिदीप्ति वाले प्रोटीन (जीएफपी) व्यापक रूप से पाए जाते हैं. ये कुछ लैंसेलेट्स (सेफालोकोरडाटा) और कॉम्बजेल्लिस (टेनोफोरा) में भी पाए जाते हैं.
वैज्ञानिक ओसामा शिमोमूरा ने पहली बार प्रख्यात जीएफपी से जेलीफिश एक्योरीया विक्टोरियो को अलग किया था जिसका बाद में कोशिकाओं में प्रोटीन वर्क के अध्ययन के लिए चमकीले मार्कर के तौर पर प्रायोगिक जीवविज्ञान में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया था.
इस खोज के लिए ही 2008 में शिमोमूरा को मार्टिन कालफी और रोजर सीएन के साथ रसायनशास्त्र का नोबल पुरस्कार प्राप्त हुआ था.

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