फैक्ट बॉक्स: पंचेश्वर बांध परियोजना एवं विवाद-(12-AUG-2017) C.A

| Saturday, August 12, 2017
उत्तराखंड में वर्ष 2018 से पंचेश्वर बांध का निर्माण कार्य प्रस्तावित है. इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु केंद्र सरकार द्वारा 09 अगस्त 2017 से जनसुनवाई आरंभ की गयी जिसमें बांध निर्माण को लेकर लोगों की शिकायतें सुनी गयीं. पंचेश्वर बांध काली नदी पर बनाया जायेगा जिसमें उत्तराखंड के 33 हज़ार के अधिक लोग प्रभावित होंगे. यह बांध उत्तर भारत की विद्युत् आपूर्ति में भी सहायक सिद्ध होगा.

पंचेश्वर बांध परियोजना
सर्वप्रथम वर्ष 1954 में जवाहर लाल नेहरू ने पंचेश्वर बांध बनाए जाने की चर्चा की थी. उस समय से विभिन्न मौकों पर इसके बारे में बात होती रही है. यह बांध नेपाल से आने वाली काली नदी और भारत की शारदा नदी पर बनेगा. पंचेश्वर बहुउद्देश्य परियोजना को अंतिम रूप देने के लिए अगस्त 2014 को भारत और नेपाल सरकार द्वारा संयुक्त रूप से पंचेश्वर बांध प्राधिकरण का गठन किया गया. सचिव जल संसाधन मंत्रालय भारत सरकार और सचिव पर्यावरण नेपाल सरकार द्वारा संयुक्त रूप से सामान्य सभा की अध्यक्षता की जायेगी.

यह उत्तराखंड के पिथौरागढ़, चंपावत और अल्मोड़ा के क्षेत्रों में मौजूद होगा. इस परियोजना के लिए वर्ष 2018 से निर्माण कार्य आरंभ होगा तथा 2026 तक बांध में पानी भरना आरंभ हो जायेगा. पानी पूरा भरने का काम दो वर्ष में पूरा होगा इस प्रकार यह 2028 तक पूरा होगा. पंचेश्वर बांध के साथ एक छोटा बांध रुपाली गाड़ बांध भी बनाया जायेगा.
पंचेश्वर बांध के लाभ

•    पंचेश्वर बांध से भारत को 4800 मेगावॉट की बिजली आपूर्ति होगी.

•    इसी तरह दूसरे छोटे बांध रुपाली गाड़ से 240 मेगावॉट बिजली प्राप्त होगी.

•    बांध की ऊंचाई 311 मीटर होगी जबकि रुपाली गाड़ की ऊंचाई 95 मीटर होगी.

•    बांध पर बनाई जाने वाली झील 116 वर्ग किलोमीटर में फैली होगी.

•    यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा बांध होगा. पहले स्थान पर शंघाई का थ्री जॉर्ज्स डैम है.

विवाद के बिंदु

•    स्थानीय नागरिकों और समाजसेवियों ने कहा है कि इस बांध परियोजना से 134 गांव प्रभावित होंगे.

•    इनमें पिथौरागढ़ के 87, चंपावत के 26 और अल्मोड़ा के 21 गांव प्रभावित होंगे.

•    भारत में लगभग 33 हज़ार लोग प्रभावित होंगे जबकि नेपाल में यह आंकड़ा 12 हज़ार होगा.

•    भारत का 120 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र डूब क्षेत्र में आएगा जबकि नेपाल का 14 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र डूब क्षेत्र होगा.

•    इतनी बड़ी संख्या में विस्थापितों के लिए पर्याप्त एवं उनकी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु आवासीय क्षेत्र उपलब्ध कराना चुनौती होगी.

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