विश्व बैंक ने भारत को सिंधु जल संधि के तहत पनबिजली परियोजना हेतु मंजूरी प्रदान की-(04-AUG-2017) C.A

| Friday, August 4, 2017
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विश्व बैंक ने 02 अगस्त 2017 को सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) के तहत भारत को झेलम और चिनाब की सहायक नदियों पर किशनगंगा (330 मेगावॉट) तथा रातल जलविद्युत (850 मेगावॉट)  परियोजनाओं पर काम करने की अनुमति प्रदान की.

विश्व बैंक का निर्णय
विश्व बैंक के अनुसार भारत को संधि के तहत पश्चिमी नदियों पर पनबिजली परियोजना बनाने की अनुमति है, लेकिन भारत में यह माना जा रहा है कि इस मामले में भारत को किसी तीसरे पक्ष की इजाजत की जरूरत नहीं है. गौरतलब है कि भारत की दो परियोजनाओं के डिजाइन पर पाकिस्तान ने ऐतराज किया था.

सिंधु जल संधि में दोनों नदियों को पश्चिमी नदी के तौर पर परिभाषित किया गया है. पाकिस्तान इन नदियों के पानी का असीमित इस्तेमाल कर सकता है. विश्व बैंक ने एक फैक्टशीट जारी कर कहा कि भारत जिन रूपों में नदियों का पानी उपयोग कर सकता है उसमें पनबिजली परियोजनाएं भी शामिल हैं हालांकि इसकी कुछ सीमाएं भी हैं.
पृष्ठभूमि
पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में स्थित दो पनबिजली परियोजनाओं के डिजाइन को लेकर चिंता जताते हुए विश्व बैंक का रुख किया था. पाकिस्तान द्वारा यह मांग की गई थी कि 57 वर्ष पुराने जल वितरण समझौते के तहत दोनों देशों के बीच मध्यस्थ विश्व बैंक इन चिंताओं के समाधान के लिए एक मध्यस्थता अदालत का गठन किया जाये. दूसरी ओर, भारत ने कहा था कि पाकिस्तान ने जो चिंताएं व्यक्त की हैं, वे 'तकनीकी' हैं और इस मामले की जांच के लिए एक तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त किया जाना चाहिए.

सिंधु जलसंधि
सिंधु जल संधि पानी के वितरण लिए भारत और पाकिस्तान के बीच हुई एक संधि है. इस सन्धि में विश्व बैंक (तत्कालीन पुनर्निर्माण और विकास हेतु अंतरराष्ट्रीय बैंक) ने मध्यस्थता की. इस संधि पर कराची में 19 सितंबर, 1960 को भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे.

इस समझौते के अनुसार, तीन "पूर्वी" नदियों ब्यास, रावी और सतलुज का नियंत्रण भारत को, तथा तीन "पश्चिमी" नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को दिया गया. हालांकि जल वितरण किस प्रकार किया जायेगा यह विवादास्पद प्रावधान था तथा जिसे निश्चित किया जाना था.

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