महल के किराए से अर्जित आय कर योग्य नहीं होगीः सुप्रीम कोर्ट-(12-DEC-2016) C.A

| Monday, December 12, 2016
सुप्रीम कोर्ट ने 5 दिसंबर 2016 को एक फैसले में कहा कि प्रिंस्ले स्टेट के भूतपूर्व शासकों या उनके उत्तराधिकारियों द्वारा आवासीय महल के हिस्से को किराए पर देने से होने वाली आमदनी कर योग्य नहीं होगी. 
इसके अलावा अदालत ने आईटी अधिनियम, 1961 की धारा 10(19ए) के तहत ऐसी आमदनी के छूट के दायरे में होने के बावजूद ऐसे मामले दर्ज करने पर आयकर विभाग को भी फटकार लगाई. यह फैसला जस्टिस राजन गोगोई और अभय मनोहर सप्रे की खंडपीठ ने दिया था.
अदालत भूतपूर्व प्रिंस्ले स्टेट कोटा, जो अब राजस्थान का हिस्सा है के शासक की याचिका की सुनवाई कर रही थी. शासक ने किराए से होने वाली उनकी आमदनी को आयकर के दायरे में लाने के उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी थी. शासक दो आवासीय महलों– उमेद भवन पैसेल और सिटी पैलेस के मालिक हैं.
शासक उमेद भवन पैलेस को अपने आवास के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं और उसका एक हिस्सा 1976 में रक्षा मंत्रालय को किराए पर दिया गया था.
पृष्ठभूमि:
•    वर्ष 1950 में, केंद्र सरकार ने किसी भूतपूर्व शासक के आवासीय महल को बतौर उसके अहस्तांतरणीय पैतृत संपत्ति के तौर पर आयकर से मुक्त किया था. लेकिन 1984 में, कर विभाग ने महल के एक हिस्से को किराए पर दिए जाने से होने वाली आमदनी का आकलन हेतु प्रक्रिया शुरु की.  
•    कर विभाग ने कहा कि कर में छूट व्यक्तिगत उपयोग हेतु दिया गया था और किराए से होने वाली आमदनी करयोग्य थी. हालांकि, आयकर आयुक्त और आयकर अपीलीय ट्रिब्यूनल ने कर विभाग की याचिका को खारिज कर दिया. बाद में कर विभाग इस मामले को राजस्थान उच्च न्यायालय ले गया.
•    उच्च न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि जब तक शासक महल का प्रयोग स्वयं कर रहा है तब तक वह आयकर में छूट का अधिकारी है लेकिन जैसे ही वह महल के किसी भी हिस्से को किराए पर देता है, तो उसे कर में छूट के दावे का अधिकार नहीं रह जाता.
•    उच्च न्यायालय के फैसले को पलटते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा 10(19ए) में 'महल' शब्द का प्रयोग शासक को कर में छूट देने के लिए किया गया है और महल के किसी हिस्से को किराए पर दिए जाने से होने वाली आमदनी भी कर– मुक्त की गई थी.
•     सरकार ने भूतपूर्व शासकों को कर में छूट देने के लिए ही आईटी अधिनियम में धारा 10(19ए) को शामिल किया था.

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