दिल्ली उच्च न्यायलय का निर्णय पैतृक संपत्ति पर बेटे का कानूनी अधिकार नहीं-(06-DEC-2016) C.A

| Tuesday, December 6, 2016
Son-no-right-in-parents-houseदिल्‍ली उच्च न्यायलय ने निर्णय दिया है कि मां-बाप का घर अनिवार्य रूप से या कानूनन किसी बेटे को नहीं मिल सकता. बेटा अपने मां-बाप की मर्जी से ही उनके घर में रह सकता है.
उच्च न्यायलय के आदेश के अनुसार बेटे की वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो, उसे मां-बाप द्वारा हासिल‍ मकान में रहने का कानूनी अधिकार नहीं दिया जा सकता. यह निर्णय जस्टिस प्रतिभा रानी की अदालत ने दिया.
उच्च न्यायलय का निर्णय-
  • उच्च न्यायलय ने इस मामले में एक व्‍यक्ति की अपील को खारिज करते हुए यह आदेश दिया.
  • इस व्‍यक्ति के मां-बाप ने बेटे-बहू के कब्‍जे से मकान खाली कराने हेतु मुकदमा दायर किया था.
  • इस मामले में निचली अदालत ने माता-पिता के पक्ष में आदेश दिया था.
  • इसके बाद इस दंपती ने निचली अदालत के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी.
बुजुर्ग मां-बाप का आरोप-
  • व्‍यक्ति के बुजुर्ग मां-बाप ने कोर्ट से कहा था कि बेटे-बहू ने उनके 'जीवन को नर्क' बना दिया है. बेटे-बहू ने दावा किया था कि मकान के वे भी सह-मालिक हैं, क्‍योंकि उन्‍होंने इसकी खरीद और निर्माण में पैसा लगाया है, लेकिन जस्टिस प्रतिभा रानी के सामने बेटे-बहू इसके बारे में कोई प्रमाण नहीं पेश कर पाए.
  • माता-पिता ने इस संबंध में पुलिस से भी शिकायत की थी और पब्लिक नोटिस के जरिए भी बेटों को अपनी प्रॉपर्टी से बेदखल कर दिया था.

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