उच्च न्यायलय के आदेश के अनुसार बेटे की वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो, उसे मां-बाप द्वारा हासिल मकान में रहने का कानूनी अधिकार नहीं दिया जा सकता. यह निर्णय जस्टिस प्रतिभा रानी की अदालत ने दिया.
उच्च न्यायलय का निर्णय-
- उच्च न्यायलय ने इस मामले में एक व्यक्ति की अपील को खारिज करते हुए यह आदेश दिया.
- इस व्यक्ति के मां-बाप ने बेटे-बहू के कब्जे से मकान खाली कराने हेतु मुकदमा दायर किया था.
- इस मामले में निचली अदालत ने माता-पिता के पक्ष में आदेश दिया था.
- इसके बाद इस दंपती ने निचली अदालत के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी.
बुजुर्ग मां-बाप का आरोप-
- व्यक्ति के बुजुर्ग मां-बाप ने कोर्ट से कहा था कि बेटे-बहू ने उनके 'जीवन को नर्क' बना दिया है. बेटे-बहू ने दावा किया था कि मकान के वे भी सह-मालिक हैं, क्योंकि उन्होंने इसकी खरीद और निर्माण में पैसा लगाया है, लेकिन जस्टिस प्रतिभा रानी के सामने बेटे-बहू इसके बारे में कोई प्रमाण नहीं पेश कर पाए.
- माता-पिता ने इस संबंध में पुलिस से भी शिकायत की थी और पब्लिक नोटिस के जरिए भी बेटों को अपनी प्रॉपर्टी से बेदखल कर दिया था.
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