एक हालिया रिपोर्ट में, अग्रणी वैश्विक वित्तीय सेवा प्रदाता कंपनी मॉर्गन स्टेनली ने अनुमान लगाया था कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार पहली बार 400 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। 16 अगस्त 2017 में जारी इस रिपोर्ट के अनुसार विदेशी मुद्रा भंडार में उछाल मजबूत पूंजी प्रवाह और कमजोर कर्जों के उठाव से प्रेरित है।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि की समीक्षा
वर्ष 1991 के बाद से भारत का विदेशी मुद्रा भंडार काफी बढ़ गया है। मार्च 1991 के अंत में रहे 5.8 बिलियन अमरीकी डॉलर का मुद्रा भंडार दिसंबर 2003 में 100 बिलियन अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया है। भारत अप्रैल 2007 में 200 अरब अमरीकी डॉलर के क्लब में शामिल हो गया और उसी गति को जारी रखते हुए वर्ष 2013 में 300 बिलियन अमरीकी डालर का आंकड़ा पार कर गया। तब से, सिर्फ चार वर्षों के अवधि में ही आरबीआई ने लगभग 100 अरब डॉलर जमा कर लिया। भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा 4 अगस्त 2017 को जारी आंकड़ों के अनुसार, 28 जुलाई 2017 को समाप्त हुए सप्ताह तक विदेशी मुद्रा भंडार 1.536 अमरीकी अरब डॉलर से बढ़कर 392.867 अमरीकी अरब डॉलर के नए रिकॉर्ड को पार कर गया था ।
भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी के कारण -
अनुकूल भुगतान संतुलन: आर्थिक सर्वेक्षण 2016-17 (खंड II) के अनुसार, भारत में भुगतान संतुलन की स्थिति वर्ष 2013-14 से लेकर वर्ष 2015-16 तक की अवधि के दौरान अच्छी एवं संतोषजनक रही थी। भुगतान संतुलन 2016-17 वर्ष में और अधिक बेहतर हो गई। व्यापार एवं चालू खातों के घाटे में निरंतर कमी और देश में पूंजी के प्रवाह में लगातार वृद्धि से ही यह संभव हो पाया था ।
व्यापार घाटे में कमी: वैश्विक अर्थव्यवस्था में धीरे-धीरे हो रहे सुधार के कारण भारत का निर्यात दो साल के अंतराल के बाद वर्ष 2016-17 में सकारात्मक (12.3 प्रतिशत) हो गया। इस कारण से भारत के व्यापार घाटे में 1.2 प्रतिशत की कमी आई ।यह प्रवृत्ति वित्त वर्ष 2017-18 में भी जारी है। वित्त वर्ष 2017-18 के पहले चतुर्थेश (अप्रैल-जून माह में) निर्यात में दहाई अंकों (10.6 प्रतिशत) की वृद्धि दर्ज की गई।
चालू खाता घाटे में कमी: चालू खाता घाटा (सीएडी) में निरंतर कमी होकर वर्ष 2016-17 में जीडीपी के 0.7 प्रतिशत के स्तर पर आ गयी। यह घटोतरी महत्वपूर्ण है क्योंकि वर्ष 2015-16 में सीएडी, जीडीपी की 1.1 प्रतिशत थी। व्यापार घाटे में तेजी से हुई कमी के कारण यह संभव हो पाया है।
पूंजी प्रवाह में वृद्धि: शुद्ध पूंजी का प्रवाह वर्ष 2016-17 में कम होकर 36.8 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 1.6 प्रतिशत) के स्तर पर आ गया । वर्ष 2015-16 में शुद्ध पूंजी का प्रवाह 40.1 अरब अमेरिकी डॉलर (जीडीपी का 1.9 प्रतिशत) था। सरकार द्वारा किए गए ईज ऑफ डूइंग उपायों के कारण यह संभव हो पाया है।
कमजोर कर्जों का उठाव: 9 नवंबर 2016 को पुराने बड़े नोटों का चलन बंद करने के निर्णय से बैंकिंग प्रणाली में मुद्रा प्रचलन काफी हद तक घट गया। 31 मार्च 2017 तक मुद्रा प्रचलन में 19.7 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई, जबकि आरक्षित मुद्रा में 12.9 प्रतिशत की कमी आंकी गईं।
बैंकों से कर्जों का उठाव बाद में और भी घटता चला गया। वर्ष 2016-17 के दौरान सकल बकाए बैंक ऋण में लगभग 7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। वित्त वर्ष 2016-17 में और इसी समय उद्योग जगत को मिले ऋण में 0.2 प्रतिशत की कमी आंकी गई।
विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि का प्रभाव
विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित लाभ प्राप्त होगा।
• भारतीय अर्थव्यवस्था में, वैश्विक अर्थव्यवस्था से उत्पन्न होने वाली अस्थिरता के कारण उपस्थित स्थितियों को सहन करने की क्षमता में वृद्धि होगी। वर्तमान विदेशी मुद्रा भंडार 11 महीने के आयात के मूल्य के बराबर है। वर्ष 1991 में भारत के पास केवल तीन सप्ताह के आयात के मूल्य के बराबर का विदेशी मुद्रा भंडार उपलब्ध था। अच्छी तरह से निष्पादित की गयी नीतियां ही इस वृद्धि का कारण है।
• समग्र विदेशी ऋण में अल्पावधि ऋण के घटक में कमी आई है। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह एक सकारात्मक संकेत है क्योंकि अल्पकालिक ऋण की तुलना में दीर्घकालिक ऋण कम ब्याज दर के साथ उपलब्ध होता है।
• मुद्रा आदान-प्रदान करने और क्रेडिट की लाइनें बढ़ाने के लिए 'अतिरिक्त भंडार' का उपयोग किया जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) जैसे बहुपक्षीय निकायों में योगदान करने के लिए भी इनका उपयोग किया जाएगा । यह उपाय वैश्विक नीति बनाने में भारत की भूमिका को मजबूत करने में सहायक होगा।
• विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि से रुपए के मूल्य में वृद्धि होगी । मजबूत रुपया आयात बिल को कम करने में मदद करेगा क्योंकि भारत लगभग 70% कच्चे तेल का आयात करता है ।
उपरोक्त लाभों के बावजूद, विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था पर निम्नलिखित प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
• रुपए के मूल्य में वृद्धि से भारत के निर्यात पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है । विशेष रूप से ‘सूचना प्रौद्योगिकी सक्षम सेवा’ क्षेत्र पर भारी असर पड़ सकता है ।
• विदेशी मुद्रा संचय में ‘अवसर लागत’ उपस्थित है क्योंकि एक तरफ आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार को कम उपज वाले अल्पकालिक अमेरिकी राजकोष (और अन्य) प्रतिभूतियों के रूप में रखता है, दूसरी तरफ उद्योग क्षेत्र उच्च ब्याज दर पर पैसा उधार लेता है ।
निष्कर्ष
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत ने ज़रूरत से ज्यादा विदेशी मुद्रा भंडारों को जमा किया है । इसलिए, आरबीआई को अतिरिक्त भंडार के बुनियादी ढांचों और बैंकों के पुनःपूंजीकरण जैसे वैकल्पिक उपयोगों में निवेश करना चाहिए।
जून 2017 तक, भारतीय रिजर्व बैंक ने रुपए के मूल्य को विनियमित करने के लिए करीबन 20 अरब अमरीकी डॉलर को मुद्रा बाज़ार में निवेश किया है । विदेशी मुद्रा भंडार का उपयोग करने के तरीकों की खोज के अतिरिक्त, आरबीआई विदेशी मुद्रा भंडार के इष्टतम स्तर की गणना करने के तरीकों को विकसित करना चाहिए ।